राजाराव पठार मेले का चौंकाने वाला सच!
राजाराव पठार मेले में बाल श्रम की खुली तस्वीर: नन्हीं बच्चियाँ करतब दिखाती रहीं, विभागीय अमला रहा मौन
बालोद:- राजाराव पठार मेले में इस बार एक ऐसा दृश्य सामने आया जिसने बाल-सुरक्षा और सरकारी जिम्मेदारियों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ओर मंच पर प्रदेश के मुखिया और अन्य मंत्री जी मौजूद थे , जहाँ विभाग द्वारा बाल कल्याण, सुरक्षा और सशक्तिकरण की बातें बताने के लिए स्टाल सजाए गये थे ; वहीं दूसरी ओर उसी मंच के नीचे छोटी-छोटी बच्चियाँ जोखिमभरे करतब करते हुए जीविकोपार्जन में जुटी दिखाई दीं।
नन्हीं बच्चियाँ खतरों से खेलती रहीं, सुरक्षा का नामोनिशान नहीं
मेले के स्थल पऱ कई कम उम्र की बच्चियाँ
ऊँचे बाँसों पर चढ़कर,
नीचे कठोर पथरीली भूमि के ऊपर पतली रस्सीयो पऱ करतब करते हुए,
संतुलन और स्टंट करते हुए दिखीं — वह भी बिना किसी सुरक्षा व्यवस्था या वयस्क निगरानी के।
स्थानीय लोगों के अनुसार ये बच्चियाँ बंजारा/घुमंतु समुदाय से प्रतीत हो रही थीं, जिन्हें परिवार द्वारा आर्थिक कठिनाइयों के चलते मेले व भीड़-भाड़ वाले स्थानों में प्रदर्शन के लिए उतार दिया जाता है महज चंद पैसो के लिए ।
बाल श्रम कानून का संभावित खुला उल्लंघन
बाल श्रम निषेध एवं विनियमन अधिनियम (Child Labour Act) और JJ Act, 2015 के अनुसार, 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से किसी भी प्रकार का प्रदर्शन/करतब/मज़दूरी कराना अवैध है, विशेषकर तब जब गतिविधि जोखिमपूर्ण व सार्वजनिक भीड़ में हो।
कानून के अनुसार, ऐसे बच्चों को
“Child in Need of Care & Protection”
की श्रेणी में रखा जाना चाहिए और DCPU, CWC, तथा चाइल्डलाइन 1098 को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए था !
पऱ विभाग का पूरा अमला ‘सेवा-सत्कार’ में व्यस्त
घटना का सबसे चिंताजनक पहलू यह रहा कि महिला बाल विकास विभाग का पूरा अमला
मंत्री जी के स्वागत, मंच प्रबंधन और प्रोटोकॉल में जुटा रहा,
जबकि उन्हीं की निगरानी में बच्चियाँ खतरों से जूझती नजर आ रहीं थी ।
एक सवाल जो रह रहकर उठता है :
“जब मंच पर बाल विकास की बातें हो रही थीं, उसी समय बच्चियाँ खतरे में थीं—क्या यही संवेदनशील प्रशासन है?”
विशेषज्ञों की राय मे यह सिर्फ बाल श्रम नहीं, बल्कि शोषण
बाल अधिकार विशेषज्ञों के अनुसार:
ऐसे करतब बच्चों की मानसिक और शारीरिक सुरक्षा को जोखिम में डालते हैं
यह आर्थिक शोषण, उपेक्षा और कानून की अनदेखी का मिश्रण है
राज्य को ऐसे समुदायों के लिए शिक्षा, पुनर्वास और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम चलाने चाहिए
क्या दोषियों पऱ कार्रवाई होगी? इसका असली दोषी कौन?
मेले में बच्चियों द्वारा स्टंट प्रदर्शन के इन दृश्यियों के बाद अब प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं।
प्रशासन से सुझाव एवं मांग है कि—
परिवार/समूह की पहचान की जाए
बच्चियों का मेडिकल व शिक्षा मूल्यांकन कराया जाए
दोषियों पर बाल श्रम अधिनियम के तहत कार्रवाई हो और परिजनों को अधिनियम की जानकारी दी जाए
और भविष्य के मेलों में बाल संरक्षण को प्राथमिकता दी जाए
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राजाराव पठार मेले का यह दृश्य सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि उस बड़ी समस्या का आईना है जहाँ
परंपरा, गरीबी और सरकारी उपेक्षा मिलकर बच्चों को जोखिम में धकेल देती है।
जब मंच पर बाल विकास की बातें हों और नीचे बच्चे खतरे से खेल रहे हों—
तो व्यवस्था की संवेदनशीलता और वास्तविकता दोनों कटघरे में खड़ी दिखती हैं।





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