राजाराव पठार में आदिवासी समुदाय का २५ मार्च से होगा हल्ला बोल
रायपुर 24 मार्च 2025: छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के ग्राम करेझर, तहसील गुरुर में आदिवासी समुदाय के साथ जमीन की खरीद-फरोख्त में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी का मामला सामने आया है। आरोप है कि प्रशासनिक माओवादियों और भू-माफियाओं की मिलीभगत से गरीब आदिवासियों की जमीनों को बाजार मूल्य से कई गुना कम कीमत पर खरीदकर अवैध कब्जा किया जा रहा है।
इस अन्याय के खिलाफ आदिवासी समुदाय 25 मार्च से जिले के सुप्रसिद्ध राजा राव पठार शहीद वीर नारायण सिंह विराट मेला स्थल पर भूख हड़ताल शुरू करने जा रहे हैं। यह वही जगह है, जहां हर साल आदिवासी समाज के लोग अपने पुरखे शहीद वीर नारायण सिंह की स्मृति में आयोजित मेले में शामिल होने पहुंचते हैं। लेकिन इस बार उसी स्थान पर उन्हें अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, जो एक विडंबनापूर्ण स्थिति को दर्शाता है।
हक और जमीन की लड़ाई
कर्रेझर गांव के आदिवासियों का आरोप है कि उनकी जमीन को भूमाफियाओं द्वारा खुले तौर पर हड़प लिया जा रहा है। मामला तब प्रकाश में आया जब पता चला कि गुरूर तहसील क्षेत्र में कन्हैयालाल साहू नामक व्यक्ति ने लगभग 40 एकड़ जमीन को आदिवासियों के नाम पर खरीद लिया। हैरानी की बात यह है कि जिन आदिवासियों के नाम पर यह जमीन खरीदी गई, वे बीपीएल राशन कार्ड धारक हैं और उनकी आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर है। ग्रामवासियों का दावा है कि कन्हैयालाल साहू ने उन्हें बहला-फुसलाकर और गलत तरीके से उनकी जमीन पर कब्जा किया।
दरअसल ग्राम करेझर के आदिवासियों का आरोप है कि उनकी जमीनों को गरीब और अशिक्षित लोगों के नाम पर खरीदा गया, जो स्वयं मनरेगा मजदूर और गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते हैं। इन खरीदारों में से कई आयकर दाता नहीं हैं, फिर भी लाखों रुपये की जमीन खरीदी गई। उदाहरण के लिए, श्रीमती प्रमिला बाई (पति कृष्ण कुमार ध्रुव, ग्राम कानिडबरी, धमतरी) के नाम से 17,35,500 रुपये बाजार मूल्य की जमीन मात्र 4,40,500 रुपये में खरीदी गई। इसी तरह, गजाधर (पिता भौगोली राम, ग्राम बोदा छापर, धमतरी) के नाम से 22,04,000 रुपये की जमीन 5,67,000 रुपये में खरीदी गई। दोनों खरीदारों ने आयकर नहीं भरा और गरीबी रेखा में जीवन यापन करते हैं।
धोखाधड़ी का तरीका
जांच में सामने आया कि इन जमीनों का वास्तविक कब्जा खरीदारों के पास नहीं है। भू-माफिया गरीब आदिवासियों के नाम पर जमीन खरीदकर उसका अवैध उपयोग कर रहे हैं। इन जमीनों पर कथित तौर पर गैर-आदिवासी लोग कब्जा जमाकर एग्रीकल्चर महाविद्यालय जैसे संस्थान चला रहे हैं। इसके अलावा, खरीदारों के नाम पर बैंक ऋण और सरकारी अनुदान का भी दुरुपयोग किया जा रहा है। विक्रेताओं का कहना है कि उन्हें उचित कीमत नहीं मिली और उनकी जमीन छल से हड़पी गई।
पीड़ितों की आवाज
ग्राम करेझर के कई आदिवासी विक्रेताओं ने अपनी आपबीती साझा की। कलाबाई जॉर्जे, भुवनेश्वर (उम्र 45), घुरऊ (उम्र 55) जैसे कई ग्रामीणों ने बताया कि उनकी जमीनें बाजार मूल्य से कई गुना कम कीमत पर बेची गईं। उदाहरण के तौर पर, भुवनेश्वर की 83,000 रुपये की जमीन 22,500 रुपये में और अमूले प्रसाद की 4,65,000 रुपये की जमीन 1,11,750 रुपये में बेची गई। ग्रामीणों का कहना है कि वे लगातार शासन-प्रशासन से संपर्क कर रहे हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही।
संविधान का संरक्षण, लेकिन हकीकत अलग
भारत के संविधान में आदिवासियों को मूलवासी के तौर पर विशेष संरक्षण और अधिकार दिए गए हैं। देश के पहले मालिक के रूप में उनकी पहचान को सम्मान दिया जाता रहा है। इसके बावजूद, उनकी जल, जंगल और जमीन पर गैर-आदिवासी पूंजीपतियों और भूमाफियाओं का कब्जा बढ़ता जा रहा है। कर्रेझर का मामला इसका जीता-जागता उदाहरण है। ग्रामवासियों का कहना है कि सरकार भले ही आदिवासी उत्थान के लिए कदम उठाने का दावा करे, लेकिन प्रशासनिक सुस्ती और उदासीनता उनकी सबसे बड़ी चिंता का कारण बनी हुई है।
मांगें और आंदोलन : आदिवासी समुदाय ने मांग की है कि -
- अवैध रजिस्ट्री को शून्य घोषित कर जमीन मूल मालिकों को वापस की जाए।
- आयकर विभाग इस धोखाधड़ी और टैक्स चोरी की जांच करे।
- भू-माफियाओं और इसमें शामिल लोगों को सजा दी जाए।
- धारा 170 ख के तहत जमीन की वापसी सुनिश्चित की जाए।
ग्रामीणों का कहना है कि जिनके नाम जमीन खरीदी गई, उनके पास इतना पैसा कभी था ही नहीं। ये लोग मनरेगा मजदूर हैं और राशन दुकान से अनाज लेते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि लाखों रुपये की जमीन खरीदने का पैसा कहां से आया?
शासन-प्रशासन की चुप्पी !
इस मामले को लेकर कर्रेझर के आदिवासियों ने जिला प्रशासन बालोद को विस्तृत जानकारी देते हुए अपनी जमीन वापस दिलाने की गुहार लगाई थी। लेकिन उनकी शिकायत पर कोई कार्रवाई तो दूर, प्रशासन ने जवाब देना भी जरूरी नहीं समझा। मौके पर निरीक्षण से सच्चाई सामने आ सकती है कि जमीन किसके कब्जे में है और इसका वास्तविक उपयोग कौन कर रहा है ?
भूख हड़ताल का ऐलान
25 मार्च से शुरू होने वाली इस भूख हड़ताल के जरिए कर्रेझर के आदिवासी न केवल अपनी जमीन वापस पाने की मांग कर रहे हैं, बल्कि पूरे आदिवासी समाज के हक और सम्मान की लड़ाई को भी राष्ट्रीय पटल पर लाना चाहते हैं। यह आंदोलन न सिर्फ प्रशासन के लिए एक चुनौती है, बल्कि देश के सामने उस सवाल को भी खड़ा करता है कि क्या संविधान में दिए गए अधिकार वास्तव में जमीनी हकीकत में बदल पा रहे हैं?
आने वाले दिनों में यह भूख हड़ताल कितना असर दिखाएगी और क्या ग्रामवासियों को उनकी जमीन वापस मिल पाएगी, यह देखना बाकी है। लेकिन यह साफ है कि कर्रेझर के आदिवासियों का यह कदम उनकी हिम्मत और संघर्ष की कहानी को बयां करता है।
निष्कर्ष :
यह मामला न केवल आदिवासियों के अधिकारों का हनन दर्शाता है, बल्कि भू-माफियाओं और प्रशासनिक मिलीभगत की गहरी साजिश को भी उजागर करता है। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो यह आंदोलन और उग्र हो सकता है। शासन-प्रशासन और आयकर विभाग से अपेक्षा है कि वह इस गंभीर मामले की निष्पक्ष जांच कर पीड़ितों को न्याय दिलाए।
यह आलेख तथ्यों को संक्षिप्त और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करता है, जो पाठकों में जागरूकता पैदा करने के साथ-साथ प्रशासन पर दबाव बनाने में सहायक हो सकता है।
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