नई दिल्ली। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर एक बार फिर झूठ और छल का सहारा लेते हुए यह दावा किया है कि खरीफ फसलों के लिए स्वीकृत एमएसपी उत्पादन लागत से डेढ़ गुना अधिक है। कॉरपोरेट मीडिया ने बिना किसी आलोचनात्मक विश्लेषण के इस दावे को तुरंत लपक लिया है। लेकिन यह दावा सच्चाई से कोसों दूर और सफ़ेद झूठ हैं, क्योंकि स्वामीनाथन आयोग की सी-2+50% की सिफारिश को सुविधाजनक रूप से ए-2+एफ एल+50% के फॉर्मूले में बदल दिया गया है, जो सी-2+50% से बहुत कम है। कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) के संकुचित लागत अनुमानों के अनुसार भी, सभी 14 खरीफ फसलों के लिए सी-2+50% घोषित एमएसपी से बहुत अधिक है।
धान :राज्यों के सी-2 अनुमानों का भारित औसत लेने पर लागत गणना में और भी अधिक विसंगति सामने आती है। धान के मामले में भारित औसत सी-2 लागत 2,188 रुपये प्रति क्विंटल आती है। इस लागत पर सी-2+50% 3,555 रुपये प्रति क्विंटल होती है। इस स्थिति में धान के किसानों को होने वाला घाटा 1,255 रुपये प्रति क्विंटल हो जाता है।
कपास : राज्यों के औसत सी-2 अनुमानों के अनुसार कपास का सी2+50% 11,163 रुपये प्रति क्विंटल होगा। इस के अनुसार किसानों को 4,042 रुपये प्रति क्विंटल का घाटा होगा।
मक्का : मक्का के मामले में औसत सी2+50% राज्यों के अनुमान के अनुसार 3378 रुपये प्रति क्विंटल होगा, जिसका अर्थ है कि वर्तमान एमएसपी पर होने वाला घाटा 1,153 रुपये प्रति क्विंटल होगा।
यही स्थिति अन्य सभी फसलों के लिए है, क्योंकि केंद्र सरकार की एजेंसी सीएसीपी की गणना राज्यों के अनुमान से काफी कम है। स्पष्ट रूप से, भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने उत्पादन की बढ़ती लागत, जैसे कि उर्वरक की ऊंची कीमतों और सिंचाई की लागत आदि को ध्यान में नहीं रखा है। उसने राज्यों के अनुमानों को थोड़ा भी सम्मान देने की जहमत नहीं उठाई है।
अश्विनी वैष्णव, जो केंद्रीय रेल मंत्री भी हैं, उन्हें एमएसपी पर झूठे दावे करने के बजाय रेल यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने एवं बार-बार होने वाली रेल दुर्घटनाओं के पीड़ितों को पर्याप्त मुआवजा देने पर अधिक समय देना चाहिए। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री के रूप में उन्हें गलत सूचना फैलाने और गोएबल्सीय प्रचार करने से बचना चाहिए।
अखिल भारतीय किसान सभा मांग करती है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार इस घोषणा को रोके और संयुक्त किसान मोर्चा के साथ बातचीत के बाद ही लागत के डेढ़ गुना दाम के वादे के अनुसार संशोधित एमएसपी लेकर आए। किसान सभा अपनी सभी इकाइयों से भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री की दोहरी नीति को उजागर करने और इस के खिलाफ खड़े होने का आह्वान करती है।