गृहमंत्री विजय शर्मा की चुप्पी और पुलिस प्रशासन की जवाबदेही पर सवाल ?
कोंडागांव में ASI उमेश मंडावी की आदिवासियों पर बर्बर पिटाई और बिलासपुर में आइसक्रीम विक्रेता पर पुलिसिया दादागिरी के वायरल वीडियो ने खोली प्रशासन की पोल; क्या गृहमंत्री और पुलिस प्रशासन जवाबदेही लेंगे या जारी रहेगा वर्दी का आतंक..?
साप्ताहिक बाजार में आदिवासियों पर पुलिसिया कहर
कोंडागांव जिले के बड़ेडोंगर थाना क्षेत्र में साप्ताहिक बाजार के बीच हुए एक दिल दहला देने वाले घटनाक्रम ने पुलिस की बर्बरता को फिर से उजागर किया है। प्रत्यक्षदर्शियों और वायरल वीडियो के अनुसार, बड़ेडोंगर थाना प्रभारी विनोद नेताम की मौजूदगी में सहायक उप-निरीक्षक (ASI) उमेश मंडावी ने आदिवासी नागरिकों के साथ खुलेआम गाली-गलौज की और उन्हें जमीन पर पटक-पटक कर लात-घूंसे से बेरहमी से पीटा। पीड़ितों में ज्यादातर आदिवासी समुदाय के लोग शामिल थे, जो बाजार में अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए आए थे।
स्थानीय लोगों का कहना है कि मामूली विवाद को लेकर ASI मंडावी ने अपनी वर्दी की हनक दिखाते हुए हिंसा का रास्ता चुना। इतना ही नहीं, जब कुछ लोगों ने इस बर्बरता का वीडियो बनाना शुरू किया, तो उन्हें भी धमकियां दी गईं और उनके फोन छीनने की कोशिश की गई। यह घटना न केवल पुलिस की अमानवीयता को दर्शाती है, बल्कि यह भी सवाल उठाती है कि जब थाना प्रभारी जैसे वरिष्ठ अधिकारी मौके पर मौजूद हों, तब ऐसी गुंडागर्दी कैसे हो सकती है?
आइसक्रीम विक्रेता पर पुलिस की दादागिरी
इसी तरह, बिलासपुर में बीती रात एक और शर्मनाक घटना ने पुलिस प्रशासन की क्रूर छवि को और गहरा किया। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में दिख रहा है कि कुछ पुलिसकर्मियों ने एक आइसक्रीम बेचने वाले गरीब व्यक्ति को बेरहमी से पीटा। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, पीड़ित का कसूर सिर्फ इतना था कि उसने पुलिसकर्मियों से कुछ सवाल पूछ लिए थे।
वीडियो बनाने वाले को भी नहीं बख्शा
इस घटना का वीडियो बनाने वाले एक अन्य व्यक्ति को भी पुलिस ने नहीं बख्शा। उसे रातभर थाने में बंधक बनाकर रखा गया, पीटा गया और धमकियां दी गईं। यह घटना बिलासपुर के एक व्यस्त इलाके में हुई, जहां दर्जनों लोग मौजूद थे, लेकिन वर्दी के खौफ के चलते कोई भी पीड़ितों के बचाव में नहीं आ सका। इस घटना ने पुलिस की जवाबदेही और उनकी कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
गृहमंत्री विजय शर्मा की चुप्पी ..! क्या वर्दीवालों को खुली छूट?
इन दोनों घटनाओं ने न केवल पुलिस प्रशासन की कार्यप्रणाली को कटघरे में खड़ा किया है, बल्कि गृहमंत्री विजय शर्मा की चुप्पी और उनकी निष्क्रियता पर भी सवाल उठाए हैं। राज्य में पुलिस सुधारों और नागरिक सुरक्षा की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले गृहमंत्री इन घटनाओं पर खामोश क्यों हैं? क्या वर्दीवालों को खुली छूट दे दी गई है कि वे आम नागरिकों, खासकर गरीब और आदिवासी समुदायों पर अत्याचार करें?
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता और आदिवासी संगठनों ने इन घटनाओं की कड़ी निंदा की है और गृहमंत्री से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, "पुलिस का काम कानून व्यवस्था बनाए रखना और नागरिकों की सुरक्षा करना है, न कि उन्हें डराना और पीटना। गृहमंत्री को चाहिए कि वे इन दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं।"
पुलिस प्रशासन की जवाबदेही पर सवाल
इन घटनाओं ने छत्तीसगढ़ पुलिस प्रशासन की जवाबदेही और उनकी ट्रेनिंग पर भी सवाल उठाए हैं। आखिर क्यों बार-बार ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं, जहां पुलिसकर्मी कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं? क्या पुलिस प्रशासन में कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है जो इन बेलगाम पुलिसकर्मियों पर नकेल कस सके?
कोंडागांव और बिलासपुर की इन घटनाओं में शामिल पुलिसकर्मियों के खिलाफ अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है, जिससे स्थानीय लोगों में गुस्सा और आक्रोश बढ़ रहा है। वायरल वीडियो के आधार पर यह स्पष्ट है कि ये घटनाएं सुनियोजित नहीं, बल्कि पुलिस की मनमानी और दबंगई का नतीजा हैं।
कोंडागांव और बिलासपुर की इन घटनाओं ने छत्तीसगढ़ में पुलिस प्रशासन की क्रूर और गैर-जिम्मेदाराना छवि को और मजबूत किया है। गृहमंत्री विजय शर्मा और पुलिस प्रशासन के लिए यह समय है कि वे अपनी जवाबदेही स्वीकार करें और दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करें। यदि ऐसी घटनाओं पर लगाम नहीं कसी गई, तो जनता का पुलिस और सरकार से भरोसा उठना तय है। सवाल यह है कि क्या गृहमंत्री इस मौके पर अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे, या वर्दीवालों की गुंडागर्दी को अनदेखा कर जनता को निराश करेंगे?
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