अक्षय तृतीया के मौके पर पुतरा और पुतरी का जगह जगह विवाह आयोजन !

बालोद : अक्षय तृतीया का पर्व वैशाख माह की शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में अक्षय तृतीया (अकति) पर्व का बड़ा महत्व है, क्योंकि इस दिन को हर दृष्टि से शुभ माना जाता है। अक्षय तृतीया को न केवल हिन्दू समाज के लोग बल्कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय के लोग भी मानते हैं। लोग अक्षय तृतीया पर्व को अलग-अलग ढंग से मनाते हैं, आदिवासी लोग अक्सर इस दिन अपने पितृदेव की जल तर्पण कर पूजा करते हैं।


छत्तीसगढ़ में अधिकतर किसान एवं कृषि मजदूर वर्ग के लोग अक्षय तृतीया  को अति शुभ दिन मानते हैं और इसी कारण लोग इस दिन अपने खेतों में हल चलाकर बीज बोने का शुभारंभ करते हैं,जिसकी झलक मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा भी देखने को मिला है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए अनेक पहल कर रही है. इसी उद्देश्य को आगे बढ़ाते हुए अक्ति तिहार अक्षय तृतीया के अवसर पर मंगलवार को सीएम भूपेश बघेल ने माटी पूजन दिवस महाअभियान का शुभारंभ किया।


मुख्यमंत्री बघेल ने माटी पूजन के दौरान सबसे पहले कोठी से अन्न लेकर ठाकुरदेव को अर्पित किया. इसके बाद परम्परागत तौर पर अन्न के दोने को बैगा को सौंपा।  इस अन्न को ठाकुरदेव के सामने रखकर सीएम ने पूजा-अर्चना की. खेत में हल और ट्रैक्टर चलाकर बीजों का रोपण भी किया ,तो वंही  बालोद ब्लॉक के चरोटा गांव में अक्षय तृतीया पर विभिन्न कार्यक्रम हुए। 

आदर्श गौठान परिसर में आयोजित कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि प्रदेश की महिला और बाल विकास मंत्री अनिला भेड़िया शामिल हुईं, साथ ही संजारी बालोद विधानसभा क्षेत्र की विधायक संगीता सिन्हा भी मौजूद रही। मंत्री, विधायक समेत आम जनता ने संयुक्त रुप से माटी पूजन किया,इसके बाद कृषि विभाग और उद्यानिकी विभाग के हितग्राहियों को योजनाओं का लाभ दिया गया  महिला और बाल विकास विभाग ने गौठान परिसर में 19 जोड़ों का विवाह संपन्न करवाया ।


अक्षय तृतीया का पर्व अनेकों दृष्टि से शुभ एवं अनोखा है, इस दिन शादी-विवाह का कार्य भी अति शुभ माना जाता है और लोग अधिकतर अक्षय तृतीया को विवाह सम्पन्न करते हैं।

अमित मंडावी
पत्रकार 

छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय के लोग कच्चे आम के फल,चार फल, गुड़ , चना ,दुध , दही इत्यादि को खरल में पीसकर चटनी बनाते हैं , तथा इसे पलास के पत्तों में रखकर अपने पितृदेव को भोग लगाकर जल तर्पण करते हैं। आदिवासी लोग पूजा से पुर्व व्रत रहकर पलास के टहनी और जामुन की टहनी तथा एक विशेष किस्म की घास (खस ) आदि को अपने पितृदेव स्वरुप मानकर मिट्टी के नये बर्तन से जल तर्पण कर नारियल अक्षत धूप दीप आदि से पूजन करते हैं। आदिवासी समुदाय के लोग अक्षय तृतीया पर्व के पूर्व आम के फल,चार फल, का सेवन पलास के पत्तों में नहीं करते। अपने पितृदेव को तर्पण करने पश्चात ही ग्रहण करते हैं।