भारतीय कृषि की विविधितायुक्त प्रचुरता विश्व की कई अर्थव्यवस्थाओं के लिये दुर्लभ है। इस बहुमूल्य संसाधन की आज के समय में समुचित उपयोग और प्रबंध की आवश्यकता है जिसके लिए हमारे किसानों की मजबूती और कृषि क्षेत्र में विकास जरूरी है। समुचित कृषि भूमि का उपयोग कर राष्ट्रीय आवश्यकताओं को पूरा कर इसके गुणधर्म को अक्षुण्य रखते हुए हमारी अगली पीढ़ी को हस्तांतरित किया जा सकता है । भारत की भौगोलिक क्षेत्रफल विश्व के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 2.4 प्रतिशत भाग है। जबकि यहाँ विश्व की लगभग 15 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है, जिनकी पेट की सुधा को शांत करने के लिए देश लगभग 10 करोड़ से ज्यादा अन्नदाता भगवान अपनी पेट की सुधा को नजर अंदाज कर बारिश, सर्दी और गर्मी में अपनी मेहनत और पसीने से सिंच अन्न उगाता है तब जाकर लोगों के डायनिंग टेबल में खाना पहुंचाता है। एक आंकड़े बंया कर रहे है हम जरा इस आंकड़े पर गौर फरमाइएगा ..
अगस्त 2018 में ही राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने ‘नफीस’ शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है. इसका उच्चारण कुछ भिन्न हो सकता है, तो वहीं यह आंकड़े कुछ लोगों की सोच पर ताले लगाने का काम भी कर सकती है।
किसानों की मासिक आय- इस रिपोर्ट के मुताबिक (जिसके आंकड़े जनवरी से जून 2017 के बीच इकठ्ठा किए गए थे) भारत में वर्ष 2017 में एक किसान परिवार की कुल मासिक आय 8,931 रुपये थी. भारत में किसान परिवार में औसत सदस्य सख्या 4.9 है, यानी प्रति सदस्य आय 61 रुपये प्रतिदिन है। संसार के सबसे बड़ा लोकतंत्र जंहा पर मुख्य व्यवसाय कृषि मानी जाती है और दुनिया से सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार भारत का यही असली चेहरा है । भारत को इस सच से शर्म नहीं आती है कि देश के एक प्रतिशत लोग 73 प्रतिशत संपदा पर कब्जा किए हुए हैं और इस कब्जे का दायरा ‘उपनिवेश’ की हद तक पहुंच चुका है।
जब राज्यों की स्थिति पर नजर डाली जाती है तो हमें किसानों की आय में गंभीर असमानता नजर आती है। नफीस रिपोर्ट के मुताबिक देश में किसानों की सबसे कम मासिक आय मध्य प्रदेश (7,919 रुपये), बिहार (7,175 रुपये), आंध्र प्रदेश (6,920 रुपये), झारखंड (6,991 रुपये), ओडिशा (7,731 रुपये), त्रिपुरा (7,592 रुपये), उत्तर प्रदेश (6,668 रुपये) और पश्चिम बंगाल (7,756 रुपये) है. जबकि तुलनात्मक रूप से किसानों की ऊंची औसत मासिक आय पंजाब (23,133 रुपये), हरियाणा (18,496 रुपये) में दर्ज की गई।
इस असमानता को देख कर यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उभर रहा है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय दो गुना करने का सूत्र, समीकरण और सिद्धांत क्या होगा? आज की स्थिति में ही जब किसानों की आय में उत्तर प्रदेश और पंजाब के बीच साढ़े तीन गुना का अंतर है, तब क्या यह अंतर वर्ष 2022 में बदला जा पायेगा?
उत्तर प्रदेश और पंजाब के समाज और किसानों के लिए आय के दो गुना होने का मतलब एक जैसा ही नहीं है. बुनियादी बिंदु यह भी है कि किसानों की आय में वृद्धि का बाजार की कीमतों और गरिमामय जीवनयापन के लिए जरूरी आय से क्या संबंध होगा?
किसान परिवार के सदस्य और आय- वर्तमान स्थिति में परिवार के सदस्यों की संख्या के आधार पर यह असमानता और बढ़ जाती है। नाबार्ड का यह अध्ययन बताता है कि; उत्तर प्रदेश में प्रति सदस्य आय 37 रुपये है। झारखंड में किसान परिवार (5.4 सदस्य प्रति परिवार) की आय के मौजूदा स्तर के हिसाब से प्रति सदस्य आय महज 43 रुपये है। इसी तरह मणिपुर में 51 रुपये, मिजोरम में 57 रुपये, छत्तीसगढ़ में 59 रुपये और मध्य प्रदेश में 59 रुपये है। इसके दूसरी तरफ पंजाब में प्रति सदस्य आय 116 रुपये, केरल में 99 रुपये, नगालैंड और हरियाणा में 91 रुपये के स्तर पर है।
क्या बदलाव आया इन 5 सालों में ?
वर्ष 2012-13 में नेशनल सैंपल सर्वे आर्गनाइजेशन ने भारत में किसान परिवारों की आय, व्यय, उत्पादक परिसंपत्तियों और कर्जे की स्थिति का अध्ययन (रिपोर्ट क्रमांक 576/2012-13) किया था. जिससे यह पता चला था कि वर्ष 2012-13 की स्थिति में भारत में एक किसान की औसत मासिक आय 6,426 रुपये थी. जिसमें 39 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. लेकिन इस वृद्धि की परतों को खोलना बहुत जरूरी है. अंदर की परतों में खेती की बदहाली का ज्यादा दर्दनाक चेहरा छिपा हुआ है।
वर्ष 2012-13 की स्थिति में (एनएसएसओ रिपोर्ट) भारत में किसान परिवार की औसत मासिक आय 6,426 रुपये थी. इसमें से 48 प्रतिशत यानी 3,081 रुपये की आय फसल से हासिल होती थी, वर्ष 2016-17 में (नाबार्ड रिपोर्ट) यह आय घट कर 35 प्रतिशत पर आ गई. इस वर्ष किसान परिवार की कुल मासिक आय 8,931 रुपये थी, जिसमें से केवल 3,140 रुपये (35 प्रतिशत) की आय खेती से हुई यानी 5 साल में केवल 59 रुपये की वृद्धि हुई है।
देश के दोनों संसद में इस कुल 790 है और भारत के सभी राज्यों के विधानसभा के विधायकों की संख्या लगभग 4 121 के आसपास है। एक सांसद को एक महिना में लगभग 2.90 लाख रुपए की वेतन मिलता है तो वहीं एक विधायक को लगभग 180 हजार रुपए जिसमें तमाम सुविधाएं शामिल हैं। हांलांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वैश्विक कोरोना महामारी के मद्देनजर सांसदों को मिलने वाली वेतन भत्ता इत्यादि में से 30% की कटौती की है तो वहीं केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वर्ष वित्तीय 2020-21 के बजट में कृषि क्षेत्र के लिए कई घोषणाएं कर रखी है।
वित्त मंत्री ने बजट भाषण के दौरान संसद के पटल पर कहा कि हमारी सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए प्रतिबद्ध है। वित्त मंत्रालय ने बजट में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को 1,42,762 करोड़ रुपए राशि का प्रावधान दिया है। पिछले साल का संशोधित बजट 1,09,750 करोड़ रुपए था। सिंचाई को लेकर बजट में विशेष प्रावधान किया गया है जिसमें 20 लाख सोलर पंप उपलब्ध कराने के अलावा 100 सूखाग्रस्त जिलों से सूखे से बाहर निकालने की योजना भी शामिल है, जिसके बाद भी देश के किसान बेहाल है जिसकी बानगी हमें छत्तीसगढ़ के बालोद जिला के गुरूर विकासखंड में देखने को मिल रहा है।
ज्ञात हो, की छत्तीसगढ़ राज्य "देश और दुनिया में धान के कटोरा जैसी उपाधि से विभूषित हैं और संचित क्षेत्र के किसान साल में दो बार धान की फसल लगाते है बालोद जिला के गुरूर विकासखंड क्षेत्र के ज्यादातर हिस्सों में धान की डबल खेती (डबल प्लान) होती है। इस बार भी क्षेत्र के किसानो ने अपने खेतों में धान की बंपर पैदावारी की थी। किसानों ने मेहनत और पसीने से उगाई हुई धान को गुरूर विकासखंड क्षेत्र के परसुली निवासी धान कोचिया पुरण साहू बेंच दिया और किसानों से खरीदे हुए धान को पुरण साहू ने धमतरी निवासी एक अड़तिया को बेंच दिया। पुरण साहू की मानें तो उक्त अड़तिया ने पुरण साहू के साथ किसानों का पैसा भी खा गया और किसान आज एक-एक पैसे के लिए दर दर भटक रहे है, तो वहीं शासन और प्रशासन से जुड़े लोगों को किसानों की इस भयंकर समस्या की कोई मालूमात नही या मालूमात करने की जरूरत ही महसूस नहीं किया गया।
बहरहाल जिला कलेक्टर जनमेजय महोबे को मामले से संबंधित थोड़ी सी जानकारी हमारे द्वारा दी गई थी, लेकिन साहब ने किसानों की इस भयंकर समस्या की हकीकत को समझने के लिए अब तक कोई पहल नहीं किया है।