जप्त की गई टेक्टर की ट्राली ले भगे लकड़ी तस्कर

वनासुरों की सांठगांठ में सक्रीय हैं वनमाफिया / लकड़ी तस्कर ... 


"जो बोंया जाता है वही काटा जाता है", जिस तरह से जिला के ग्रामीण अंचलों से दिन-रात अवैध तरीक़े से हरे वृक्षो की अंधाधुंध कटाई से जो परिस्थितियां बनते हुए दिख रही है; उसे देख यही कहा जा सकता है। ज्ञात हो कि अंचल के किसानों के साथ आम जनता ने विगत कई सालो से मौसम में भयानक तरीक़े से परिवर्तन का नजारा अपनी खुली आंख से देखते हुए आ रहे है। सरकार और जानकार इसे ग्लोबल वार्मिंग की संज्ञा देते हुए हर साल योजना बद्ध तरीके से करोड़ो रूपये खर्च कर रही है। वृक्षारोपण कार्य को लेकर; लेकिन जमीनी हकीकत की बानगी कुछ अलग ही दर्शन लीला दिखा रही है। छत्तीसगढ़ निर्माण के पश्चात् लगातार वृक्षारोपण होने के बावजूद वर्ष 2001 से 2015 तक लगभग 3 प्रतिशत जंगल अर्थात् 3700 वर्ग कि.मी. जंगल कम हो गया है। वर्ष 2015 में 10 करोड़, वर्ष 2016 में 7 करोड़ 60 लाख और वर्ष 2017 में 8 करोड़ पौधे रोपित किये गये थे। इसके बावजूद भी जंगल का रकबा नहीं बढ़ा, बजाय जमीन के ! अफसरों ने सरकारी रजिस्टर में ही पौधे ऊगा दिए जिसके पके हुए फलो को कुछ सफेदपोश न्यौछावर खोर नेताओं ने छकते हुए गटक गये। वहीं राज्य में दर्जन भर से ज्यादा जिलों में मैदान खाली पड़े है, जहां वन विभाग ने सरकारी रिकार्ड में बड़े वृक्षों का जंगल बताया गया है। जबकि इन इलाकों में जंगलों का दूर-दूर तक नामों निशान नहीं है।


बालोद
। वन विभाग के अफसरों ने राजनैतिक रूप से प्रभावशाली शख्स के इशारे पर हर साल लाखों पेड़ खरीदे। उनका करोड़ों में भुगतान हुआ, लेकिन असलियत में पेड़ आये ही नहीं। खानापूर्ति के लिए पौधे नर्सरी में ला दिये गए, सरकारी पौधरोपण कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के हाथों पौधारोपण भी करा दिया गया। समारोह की तस्वीरें खूब प्रचारित की गई, दूसरी ओर जंगल घटते चले गए। जरा सोचिए वृक्षारोपण में भाग लेने वाले लोग या फिर वृक्ष रोपने वाले लोगो के मन में जब तक की पेड़-पौधौ को लेकर जागरूकता नही रहेगी, तब तक कितना भी पैसा बहा दिया जाए पेंड़ सिर्फ कागजो में ही उगेगा। यह बात पर्यावरण प्रेमी अकसर कहते हुए आ रहे है।

जिला के ग्रामीण अंचल में धान की खरीब फसलो की कटाई के बाद हर साल लकडी माफिया लाखो की मात्रा में किसानों की खेतो से लकड़ी काट कर आरा मिलो में टेक्टर या मेटाडोर जैसी वाहनो में भर कर ले जाते हैं, जहाँ पेंड़ो की कटाई और चीराई कर मंहगे दामो पर बड़े-बड़े शहरो में सप्लाई की जाती है, तो वहीं कुछ स्थानीय लकड़ी के कारीगरों को भी बेंच दिया जाता है। जिला में लाखो रुपये की कारोबार है हरे वृक्षो की कटाई का। सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार जिला के कई छोटे कर्मचारीयो के साथ न्यौछावर खोरी में मुंह से लार टपकाते हुए कुछ बड़े अधिकारी की शामिल होने की बात कही गई है। कहा तो यह भी जाता है कि जिला के एक प्रभावशाली अधिकारी ने विगत दिनों; पहले जिला के गुरूर विकासखंड क्षेत्र के कुछ मजदूरों को अपने निवास स्थान पर ले जाकर पेंड़ो की कटाई करा रहा था। उसी दौरान हादसा हो गया जिसके बाद मजदूर की हालत गंभीर हो गई। आखिर में यह बताया गया कि उक्त मजदूर की ईलाज तक की व्यवस्था नही की गई, जिसके चलते मजदूर की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है तथा उसे किसी के द्वारा कोई सहायता नही मिली है। जबकि उक्त मजदूर जिला के एक बड़े अधिकारी के घर में लगे हुए वृक्ष को काटने के लिए मजदूरी पर गया था।

गुरुर विकासखंड क्षेत्र सनौद पंचायत के मिश्रित पौधा रोपनी की भूमि की घटना से रुबरु कराते हैं। दरअसल कोसागोंदी निवासी महंगू राम निषाद जो सालो से हरे भरे वृक्षो की कटाई में अपनी हुनर को धार चमक देते हुए लगातार पर्यावरण की बैंड बजा राहा है। विकासखंड क्षेत्र के कमीशन खोर अधिकारियों के चलते महंगू राम निषाद का हौसला इतना बढ़ा हुआ है कि पहले तो उसने खारून नदी की सहायक नाले की सरकारी जमीन से हरे वृक्षो की कटाई की जिसके लिए सनौद पंचायत के द्वारा कराई गई मिश्रित वृक्षारोपणी की सुरक्षा तार को कई जगहो से तोड़ कर नुकसान पहुंचाया है, जिसकी जानकारी ग्राम पंचायत सनौद को दी गई है।

अमित मंडावी
संवाददाता
 

वैसे देखा जाय तो महंगू राम निषाद उम्र के इस पड़ाव में है कि वह इतनी बड़ी अपराध की हिम्मत कतई नही कर सकता है। अटकले तो यह लगाई जा रही है कि महंगू राम निषाद को पर्दे के पीछे छुपकर किसी चालक और धुर्त व्यक्ति चला रहा है जिसके इशारे में महंगू राम पर्यावरण के साथ गंदा खेल खेल रहा है। मामले की जानकारी सुब्रत प्रधान, गुरूर तहसीलदार को भी दी गई जिसके बाद में नयाब तहसीलदार गुरूर के द्वारा मामले में कार्यवाही करते हुए लकड़ी से भरी गाड़ी को जप्त कर ग्राम पंचायत पड़कीभाट और सनौद के कोटवार को सुपुर्द किया गया था; जिसे महंगू राम निषाद ने रातो रात पार कर गायब कर दिया है।