महिला बाल विकास मंत्री के गृह जिला गर्भवती महिला की मृत्यु ! परिजनों की वेदना पर दाँत निपोरते अधिकारी ...!!

छत्तीसगढ़ प्रदेश की जनता नशबंदी कांड की वेदनाओं को अब तक नही भूली है, आज भी परिजन न्याय की मांग लेकर तरस रहे हैं। वहीं जिला बालोद में जोकि राज्य के महिला बाल विकास मंत्री के निर्वाचन क्षेत्र भी हैं; जहाँ के जिला चिकित्सालय में अमानवीयता और सरकारी छलावा की झलक बीते दिनों देखने को मिला। अस्पताल में दो मासूम; दुनिया देखने से पहले ही दम तोड़ दिया। तो वहीं प्रसव से पहले मां भी दुनिया में नहीं रही। एक बार फिर बालोद जिला अस्पताल में पदस्थ स्वास्थ्यकर्मियों की बड़ी लापरवाही सामने आई है। स्वास्थ्यकर्मियों की इस लापरवाही को लेकर परिजनों ने खूब हंगामा किया। जिसके बाद मौके पर पुलिस प्रशासन की टीम सहित एसडीएम, तहसीलदार पहुंचे लेकिन कई घंटों के बाद भी परिजन नहीं माने।

देखिए एसडीएम मैडम सिल्ली थॉमस कैसे परिजन को आँखे तरेर रही है।  

बालोद। पारागांव निवासी एक गर्भवती महिला को शुक्रवार से मातृशिशु अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां रविवार रात महिला के पेट में अचानक दर्द होने लगा। जिसके बाद परिजनों ने वहां ड्यूटी पर तैनात स्टाफ नर्स को इसकी सूचना दी, आश्चर्य ! स्टाफ नर्स; अभद्र तरीके से बात करते हुए वहां से चली गई। परिजनों का आरोप है कि महिला रात भर दर्द से कराहती रही, लेकिन स्वास्थ्य विभाग का कोई जिम्मेदार झांकने तक नहीं आया। जिसके चलते सोमवार सुबह महिला ने दम तोड़ दिया। बताया जा रहा है कि; महिला के पेट में दो बच्चे थे, उनकी भी मौत हो गई। परिजनों का कहना है कि, महिला की तकलीफ बढ़ने के बाद अस्पताल के जिम्मेदारों को परिजनों ने रिफर करने की मांग की लेकिन जिम्मेदार नहीं माने।

महिला की मौत के बाद परिजनों ने रविवार सुबह से ही अस्पताल परिसर में हंगामा करना शुरू कर दिया। तो वहीं परिजनों ने शव लेने से इनकार कर दिया। मामले की जानकारी के बाद पुलिस प्रशासन की टीम के साथ ही एसडीएम तहसीलदार मौके पर पहुंचे। जहां परिजनों ने महिला के पति को नौकरी व मुआवजा दिलाने के साथ ही नर्स पर कार्यवाही करने की मांग पर अड़े रहे। एसडीएम सिल्ली थॉमस ने नर्स पर कार्यवाही करने व प्लेसमेंट एजेंसी के द्वारा नौकरी देने की बात पर हामी भरी, लेकिन मुआवजा नही मिल पाने की बात कहने लगे। जहां पर नपाध्यक्ष विकास चोपड़ा पहुंचे और अपनी ओर से तत्काल सहायता राशि के रूप में 20 हजार रूपये दिये तब परिजन महिला के शव को ले गये। 


एक ओर सरकार जंहा मातृत्व और शिशु मृत्यु दर पर काबू पाने की बड़े-बड़े दावे अक्सर मंचों के माध्यम से अकसर करते है तो इस तरह की घटना आए दिन सामने आती ही रहती हैं। अब सरकार की दावो को कहाँ तक सही माना जा सकता है ? क्योकि सरकार किसी की भी दल की हो वह अपनी छवि और कार्य को जनता के लिए बेहतर ही बताने और दिखाने का काम करती हैं। इसमें कोई दो मत की राय नहीं कि हकीकत के धरातल पर प्रदेश में अफसरशाही चरम पर है जंहा आम आदमी की औकात अफसर ने दो कौड़ी का बना रखा है। अधिकारी और कर्मचारी जनता की सेवा करने के बजाय मेवा खाने का श्रोत जनता को ही समझ रखे हैं, जिसके चलते आम जनता को इस तरह की घटनाओं से निजात नही मिल पा रहा है, जबकि प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी ने चुनाव में जाने से पहले हमारी सरकार आपकी सेवा की आधार जैसी बातो को बार-बार जनता के समझ दुहराया था लेकिन आज जिस तरह से प्रदेश की जनता को खुले आंख से जो आज दिखाई दे रही है वही सत्य है देश के नेताओं ने अब तक सिर्फ अपने और अपने चमचो की घरो की तिजोरीयां भरी है जिसके कारण जिला के अस्पतालों में से मरीज को रायपुर या बड़े शहरो के मंहगे हास्पिटलो में इलाज के लिए रेफर किया जाता है जहाँ पर मरीज की जान बचाने के लिए परिवार की पूरी कमाई के साथ संपत्ति भी लुटा दी जाती है। जबकि नेताओं के परिवार जनो को फोकट में या फिर जनता के मेहनत की कमाई की पैसों से वी वी आईपी इलाज की सुविधा होती हैं ।

डॉ बीएल रात्रे, सिविल सर्जन :- "स्वास्थ्य कर्मियों की ओर से किसी भी तरह की लापरवाही नहीं की गई है रात में तीन बार जांच के लिए डॉक्टर गए थे। मरीज की स्थिति को देखते हुए उन्हें बाहर रेफर करने की बात भी डॉक्टरों ने कही लेकिन परिजन नहीं माने।"

 
विनोद नेताम संवाददाता