दशकों से झरिया का गंदा पानी पी रहे 25 ग्रामीण परिवार ! - PRACHAND CHHATTISGARH

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Monday, November 30, 2020

दशकों से झरिया का गंदा पानी पी रहे 25 ग्रामीण परिवार !

कांकेर। हर पांच सालों में उन उपेक्षित आशन्वित ग्रामीणों को कानों में वो बातें कुछ पल के लिए जरुर सुकून देती है की इस बार शायद उनकी मूलभूत मांगे पूरी हो जायेगी, जिसकी आस में वे बच्चे से अब बूढ़े भी हो चले हैं। बस्तर अंचल के अंदरूनी इलाकों में ऐसे सैकड़ों हजारों गाँव बसे है जहां 73 बरस बाद भी वैसे ही हालत है जैसे आजादी से पहले हुआ करते है। सडक, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत मांगों को छोड़ भी दिया जाए; तो जान बचाने के लिए साफ़ पानी का एक कतरा तक उनको नसीब नहीं है।

सदियों से अपनी तकदीर को कोसते आ रहे अनपढ़ आदिवासी ग्रामीण आज भी खेतों और गड्ढों में जमा गंदे पानी से प्यास बुझाने को मजबूर है। 73 बरस से साफ़ पानी पीने को तरसने का ताजा मामला नक्सल प्रभावित अंतागढ़ ब्लाक ग्राम बोडागांव का है जहां आज भी आदिवासी ग्रामीण खेतों और गड्ढों में जमा गंदा पानी पीना उनका नसीब बना हुआ है। ग्रामीण अपनी प्यास बुझने खेतों में एक कुंडनुमा झरिया के काई जमे गंदे पानी से अपनी प्यास बुझाने को मजबूर है। सदियों से गंदा पानी पी अपनी बुझने के मामले पर गाँव के मजबूर ग्रामीण अपनी व्यथा बताते है कि उनके गाँव में तकरीबन 20-25 परिवार निवास करता है जब से वे पैदा हुए हैं, तब से वे खेत में बने झरिया के गंदे पानी पी आधी उम्र गुजर दिए है। कई बार ग्राम पंचायत और नेताओं से एक हैन्डपम्प की मांग कर चुके है लेकिन कोई उनकी बातों पर अमल नहीं करता।

अमीत मांडवी संवाददाता 

गंदे पानी के उपयोग से उनके बच्चे और बुजुर्ग बीमार तो होते हैं लेकिन क्या करे ? जीवन रक्षक जब साफ पानी नसीब नहीं, तो बेहतर इलाज एक बेमानी है। ऐसे में कुछ सवाल तो लाजमी है; उन नेताओं और अफसरानों से जो ग्रामीणों को साफ़ पानी देने के लिए हर साल लाखों करोड़ों बजट बना रूपये पानी की तरह उनके नामों पर बहाते है और भारी भरकम बजट कहा जाता है ये किसी को पता नहीं …



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