संजय पराते |
माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा है कि स्वास्थ्य क्षेत्र के बड़े पैमाने पर निजीकरण के चलते मोदी सरकार कोरोना महामारी पर काबू पाने में विफल रही है। इसके ऊपर से देश पर जो अनियोजित और अविचारपूर्ण लॉक डाउन थोपा गया, उसके कारण करोड़ों लोगों की आजीविका नष्ट हो गई है और देश एक बड़ी मंदी के दलदल में फंस गया है। उन्होंने कहा कि इस संकट से निपटने का एक ही रास्ता है कि हमारे देश के जरूरतमंद लोगों को हर माह 10 किलो अनाज मुफ्त दिया जाये, आयकर दायरे के बाहर के सभी परिवारों को हर माह 7500 रुपयों की नगद मदद दी जाए और मनरेगा का विस्तार कर सभी ग्रामीण परिवारों के लिए 200 दिन काम और 600 रुपये मजदूरी सुनिश्चित किया जाए।
माकपा नेता ने कहा कि उपरोक्त कदम आम जनता की क्रय शक्ति बढ़ाएंगे, जिससे बाजार में मांग बढ़ेगी और औद्यौगिक उत्पादन को गति मिलेगी। यही रास्ता देश को मंदी से बाहर निकाल सकता है। लेकिन इसके बजाय, मोदी सरकार देश की संपत्ति को ही कॉरपोरेटों को बेच रही है और इसके खिलाफ उठ रही हर आवाज का दमन कर रही है। वह संविधान के बुनियादी मूल्यों और नागरिकों के मौलिक अधिकारों के हनन पर तुली हुई है और लोगों में फूट डालने के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की तिकड़मबाजी में जुटी है और देशभक्त नागरिकों, राजनेताओं, बुद्धिजीवियों के खिलाफ यूएपीए जैसे दमनकारी कानूनों का उपयोग कर रही है।
माकपा नेता ने आरोप लगाया कि संघ नियंत्रित भाजपा सरकार को संसदीय जनतंत्र की कोई परवाह नहीं है। यही कारण है कि राज्यसभा में बहुमत न होने और विपक्ष द्वारा कृषि विधेयकों पर वोटिंग की मांग के बावजूद इन्हें ध्वनि मत से पारित होने की घोषणा कर दी गई है। कृषि क्षेत्र में अब इन कॉर्पोरेटपरस्त कानूनों के खिलाफ सड़क की लड़ाई लड़ी जाएगी, क्योंकि ये कानून देश के किसानों को बंधुआ गुलामी की ओर ले जाते है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार इन कानूनों के जरिये किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने तथा नागरिकों को राशन प्रणाली के पजरिये सस्ता अनाज देने की जिम्मेदारी से छुटकारा पाना चाहती है।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की इन जनविरोधी नीतियों के खिलाफ आम जनता में व्यापक असंतोष और गुस्सा है और इसको अभिव्यक्ति देने के लिए 22 सितम्बर को पूरे छत्तीसगढ़ में फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए विरोध प्रदर्शन आयोजित किये जायेंगे।