अब धान के साथ मखाना की भी खेती: सफल परीक्षण

धमतरी कृषि विज्ञान केंद्र में हुआ सफल परीक्षण 

परिपक्वता अवधि भी कम, बढ़ाई उत्पादन क्षमता 

*रूपेश कुमार वर्मा

अर्जुनी/भाटापारा। मखाना की खेती की नई विधि। अब धान के साथ इसकी भी फसल ली जा सकेगी। मखाना अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित इस नई विधि पर प्रदेश में सबसे पहले जिले में प्रयोग किया गया। फील्ड वर्क में किया गया यह प्रयोग बेहद सफल रहा है। इसे देखते हुए जिले में इसकी खेती विस्तार लेती दिखाई दे रही है।
मेवा की विभिन्न उपलब्ध किस्मों में एक मेवा मखाना भी है। देश में इसकी व्यवसायिक खेती बिहार के 9 जिलों में होती है जहां से निकला उत्पादन देश के मेवा बाजार तक पहुंचता है। इन 9 जिलों में इसकी खेती का रकबा लगभग 13000 हेक्टेयर के आसपास है। मांग उत्पादन की तुलना में ज्यादा है लिहाजा पूरे साल इसकी कीमतें बढ़ी हुई होती हैं। खेती के लिए किसानों में उत्साह तो बहुत है लेकिन प्रचलित विधि के पालन में व्यवहारिक कठिनाइयों को देखते हुए इसका रकबा देश के दूसरे राज्यों में नहीं बढ़  पाया। फिर भी बिहार के बाद पश्चिम बंगाल, मणिपुर, त्रिपुरा, असम, जम्मू कश्मीर, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में प्रसार बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है लेकिन बेहद सुस्त गति हतोत्साहित करने वाली है। बेहतर मांग और बाजार के बावजूद कमजोर उत्पादन को देखते हुए मखाना अनुसंधान केंद्र ने इसके पीछे के कारणों का अध्ययन किया जिसमें कई अहम खुलासे हुए हैं। अब इन्हें दूर कर लिया गया है।


 इसलिए खेती को लेकर रुझान नही -

मखाना अनुसंधान केंद्र ने इसकी व्यवसायिक खेती को लेकर रुझान नहीं होने के कारणों की जब जांच की तो उसमें कई महत्वपूर्ण दिक्कतों के आने की जानकारियां आई। पहली समस्या थी तालाब या गड्ढे की। जिसकी जरूरत सबसे अहम थी। दूसरी समस्या रोपण के पूर्व जरूरी इंतजाम के रूप में सामने आई। तीसरी समस्या जिसे सबसे मुख्य माना गया वह यह कि परंपरागत विधि से फसल में समय का ज्यादा लगना और उत्पादन की मात्रा का कम होना।

 अब इस विधि से मखाना की खेती -

मखाना अनुसंधान केंद्र की नई विधि का सबसे पहले प्रयोग धमतरी जिले में किया गया है। कृषि विज्ञान केंद्र प्रमुख वैज्ञानिक डॉ एसएस चंद्रवंशी की निगरानी में मखाना की खेती की नई विधि पर सबसे पहले काम किया गया। सफलता के बाद इसे जिले के किसानों तक पहुंचाया गया। इस फील्ड वर्क की सफलता के बाद धान की सरना और एचएमटी के अलावा 140 से 145 दिनों तैयार होने वाली किस्मों के साथ मखाना की खेती का किया जाना संभव हो चुका है। परिपक्वता अवधि पहले 5 माह की जगह एक माह करके 4 माह में किया जाना संभव किया जा सका। उत्पादन की मात्रा प्रति एकड़ 8 से 10 क्विंटल का होना निश्चित हुआ है। इस नई विधि को जिले में विस्तार देने के बाद प्रदेश के दूसरे जिलों तक इसकी जानकारी दिए जाने और धमतरी में ही मखाना प्रसंस्करण केंद्र लगाने की तैयारी अंतिम चरण में है।

क्या है मखाना ? 



मखाना एक जलीय पौधा है जो पूरे साल स्थिर रहने वाले जल जैसे तालाब, झील, कीचड़ तथा गड्ढों में तैयार होता है। इसके सही विकास के लिए 20 से 35  डिग्री सेल्सियस का तापमान जरूरी है। जड़, पत्तियों और फूलों की स्थिति में सबसे ज्यादा आश्चर्य में डालती है इसके पत्तों का फैलाव जो गोलाई में 1 से 2 मीटर की परिधि में फैली होती है। यह पत्तियां गुच्छेदार जड़ों से निकली शाखा पर लगती है। एक पौधे में तीन से पांच जड़ों के गुच्छे होते हैं। फूल और फल की स्थिति की जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक फूल चमकदार बैगनी रंग का होता है। इसका आकार कटोरी नुमा होता है जबकि फल  5 से 8 सेंटीमीटर के व्यास में फैले होते हैं। प्रत्येक फल में 20 से 200 बीज निकलते हैं और यही बीज सूखने के बाद मखाना का रूप ले लेते है।


मखाना की खेती की नई विधि के आ जाने के बाद प्रदेश के किसान इसकी खेती धान की किस्मों के साथ कर सकेंगे जो 140 से 145 दिन में तैयार होती है। पहले की तुलना में अब मखाना की खेती में 1 माह का समय कम होगा और उत्पादन भी बेहतर मिलेगा।

डॉ. एस .एस .चंद्रवंशी
केंद्र प्रमुख एवं प्रमुख वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केंद्र धमतरी