आवेदन शुल्क और एफडीआर के नाम पर वसूली जारी, लेकिन पुराने काम का पैसा अब तक अटका !
रायपुर : छत्तीसगढ़ में लोक निर्माण विभाग के ठेकेदारों को बीते कुछ समय से भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। विभाग द्वारा करोड़ों रुपये के भुगतान में देरी की जा रही है, जिससे ठेकेदारों की आर्थिक हालत खराब हो रही है। कांकेर जिले में ही चार करोड़ से ज्यादा की राशि पिछले एक साल से अटकी हुई है, लेकिन अब तक न कोई ठोस जवाब मिला है, न समाधान।
फाइलें दौड़ रही, भुगतान रुका पड़ा
जानकारी के मुताबिक, ठेकेदारों के द्वारा किए गए कार्यों की फाइलें कार्यपालन अभियंता से लेकर प्रमुख अभियंता, नया रायपुर तक चक्कर काट रही हैं, लेकिन भुगतान का कोई अता-पता नहीं है। ठेकेदार थक चुके हैं, लेकिन विभाग है कि सिर्फ नई निविदाएं निकालने में जुटा है।
निविदाएं चालू, बकाया बाकी!
हैरानी की बात ये है कि विभाग एक तरफ लगातार नए टेंडर निकाल रहा है, जिसमें आवेदन शुल्क और एफडीआर के नाम पर लाखों रुपये जमा करवा लिए गए हैं, लेकिन पुरानी परियोजनाओं का भुगतान अब तक अधर में है। ठेकेदारों का आरोप है कि ये सब एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है, जहां सिर्फ पैसे जमा करवाए जा रहे हैं, लेकिन काम का मेहनताना नहीं दिया जा रहा।
राजधानी में भी यही हाल
रायपुर जैसे बड़े शहर, जहां सरकारी निगरानी सबसे मजबूत मानी जाती है, वहां भी विभाग के अफसर नियमों की अनदेखी कर रहे हैं। जब ठेकेदार सवाल पूछते हैं, तो या तो टाल-मटोल की जाती है या फिर कोई जवाब ही नहीं मिलता।
राजनीति भी आई चर्चा में
कुछ ठेकेदारों ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि ये हालात भाजपा सरकार में पैदा हुए हैं। उनका कहना है कि कांग्रेस के शासन में काम के साथ-साथ भुगतान भी समय पर हो जाता था, लेकिन अब विभाग सिर्फ वादे कर रहा है, अमल नहीं।
क्या अब सिर्फ वसूली ही मकसद?
इस पूरे मामले ने ठेकेदारों का भरोसा हिला दिया है। सवाल उठ रहा है कि क्या विभाग अब सिर्फ ठेकेदारों से एफडीआर और शुल्क के नाम पर पैसे लेकर राजस्व जुटा रहा है? जब पुराना भुगतान नहीं हो रहा, तो नई निविदाएं जारी करना कितना जायज है?
अब क्या उम्मीद करें ठेकेदार?
जो ठेकेदार लाखों रुपये फंसाकर काम कर रहे हैं, उन्हें अब भुगतान के लिए विभाग के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं है। इससे न केवल ठेकेदारों की कमर टूट रही है, बल्कि उनके साथ काम करने वाले मजदूरों और छोटे सप्लायर्स की रोज़ी-रोटी पर भी असर पड़ रहा है।
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