अधिकारियों के चक्कर काटने पर मजबूर प्रभावित, नहीं हो रही कहीं सुनवाई।
कार्यालयों के अनावश्यक परंतु उनकी कहीं कोई सुनवाई
विडंबना यह है कि इसमें से भी भुगतान हेतु 5.30 करोड़ रुपये की राशि शेष है। इसके अतिरिक्त, मनेंद्रगढ़ अनुभाग की अनुपूरक सूची के अंतर्गत 6.78 करोड़ रुपये एवं बैकुंठपुर अनुभाग के अंतर्गत 2.45 करोड़ रुपये, इस प्रकार कुल 14.53 करोड़ रुपये का भुगतान अभी तक लंबित है। पीड़ित हितग्राही अपनी गाढ़ी कमाई और आजीविका के स्रोत को खोकर, कार्यालयों के, अधिकारियों के अनावश्यक चक्कर काटने को मजबूर हैं, परंतु उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
अधिकारियों का यह उदासीन रवैया अत्यंत निंदनीय है, जिसके कारण उन हितग्राहियों में गहरा आक्रोश व्याप्त है जिनकी भूमि अधिग्रहित कर ली गई है और उन्हें अब तक उनका न्यायोचित मुआवज़ा नहीं मिला है। चार वर्षों का लंबा इंतज़ार बीत चुका है और कई हितग्राहियों के तो ज़मीन और मकान तक इस प्रक्रिया में नष्ट हो चुके हैं। सड़क परिवहन एवं राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा इस संबंध में राजपत्र अधिसूचना जारी की गई थी और इसे सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित भी करवाया गया था।
मुआवज़ा राशि भी तैयार बताई जा रही है, फिर भी हितग्राहियों तक इसका न पहुंचना प्रशासनिक निष्क्रियता और संवेदनहीनता का स्पष्ट प्रमाण है। पीड़ितों ने अनुविभागीय अधिकारी, कलेक्टर, लोक निर्माण विभाग जैसे संबंधित अधिकारियों को कई बार पत्र लिखकर जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें कहीं से भी संतोषजनक उत्तर नहीं मिला।
अधिकारियों का मात्र एक घिसा-पिटा जवाब मिलता है कि "आपका पैसा मिलेगा," परंतु कब मिलेगा, यह बताने के लिए कोई भी तैयार नहीं है। अधिग्रहित भूमि के सभी पीड़ित हितग्राही सक्षम अधिकारियों से करबद्ध प्रार्थना करते हैं कि NH43 में अधिग्रहित की गई उनकी भूमि का मुआवज़ा यथाशीघ्र दिलाया जाए। अन्यथा, वे अपनी हक़ की लड़ाई के लिए उग्र आंदोलन करने पर विवश होंगे, जिसकी संपूर्ण ज़िम्मेदारी शासन और प्रशासन की होगी। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि न्याय में अत्यधिक विलंब न्याय से वंचित करने के समान है, और इन पीड़ितों को अब और इंतज़ार न कराया जाए।
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योगेन्द्र प्रताप सिंह |
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