(आलेख : संजय पराते)
रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा में 8 फरवरी को पेश आर्थिक सर्वेक्षण से स्पष्ट है कि प्रदेश में कृषि का संकट गहरा रहा है और आर्थिक असमानता बढ़ रही है। उद्योग और सेवा के क्षेत्र में विकास दर में न केवल राष्ट्रीय औसत की तुलना में गिरावट आई है, बल्कि प्रदेश में भी कृषि सहित तीनों क्षेत्रों में पिछले वर्ष 2022-23 की तुलना में विकास दर में गिरावट आई है। पिछले वर्ष कृषि विकास की दर 4.33% थी, जो इस वर्ष एक चौथाई से भी ज्यादा गिरकर 3.23% रह गई है। कृषि और संबद्ध कार्यों में प्रदेश की 70% जनता की हिस्सेदारी है, लेकिन अर्थव्यवस्था में इस क्षेत्र का योगदान केवल 15.32% है। इससे कृषि अर्थव्यवस्था और किसानों की बदहाली और घटती क्रय शक्ति का पता चलता है, जिसकी अभिव्यक्ति प्रदेश में बढ़ती किसान आत्महत्याओं में हो रही है।
सर्वेक्षण के अनुसार, प्रदेश में प्रति व्यक्ति औसत आय पिछले वर्ष के 1,38,898 रूपये से बढ़कर इस वर्ष 1,47,361 रूपये हो गई है। इसके बावजूद प्रदेश में बहुसंख्यक मेहनतकश जनता की आय में गिरावट आई है और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि कॉर्पोरेटों की तिजोरी में कैद होकर रह गई है। प्रदेश की इस दुर्दशा के लिए राज्य में पिछली कांग्रेस सरकार से ज्यादा जिम्मेदार केंद्र की वह मोदी सरकार है, जो इस प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट की नीतियों को लागू करने के लिए राज्य सरकारों पर दबाव डालती है।
इस संकट से उबरने का रास्ता यही था कि कृषि के क्षेत्र और ग्रामीण विकास के कार्यों में सार्वजनिक निवेश बढ़ाया जाता, किसानों को उन पर चढ़े बैंक और महाजनी कर्जों से मुक्त किया जाता, उन्हें फसल की सी-2 लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य दिया जाता तथा मनरेगा में काम के दिन और मजदूरी दर बढ़ाई जाती। लेकिन 9 फरवरी को पेश बजट में ऐसे कोई कदम नहीं उठाये गए हैं।
उदाहरण के तौर पर, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नाम पर (पूरे बजट दस्तावेज में मनरेगा का कोई जिक्र नहीं है और यह संकेत है कि आने वाले दिनों में राज्य में इस योजना का क्या हश्र होने वाला है!) 2887 करोड़ रुपए आबंटित किए गए हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति परिवार औसतन 32 दिनों का ही रोजगार सृजन होगा, जबकि मनरेगा मांग के आधार पर न्यूनतम 100 दिनों के रोजगार की गारंटी देता है। मनरेगा में रोजगार पाने के लिए जो नए नियम बनाए गए हैं, उससे प्रदेश के 17 लाख ग्रामीण परिवार पंजीयन कार्ड होने के बावजूद मनरेगा में रोजगार की पात्रता से वंचित कर दिए है।
इसी प्रकार, कृषि उन्नति योजना के अंतर्गत आबंटित 10000 करोड़ रुपयों की राशि से केवल 100 लाख टन धान खरीदी के मूल्य अंतर की ही भरपाई हो पाएगी, जबकि इस वर्ष ही 145 लाख टन धान की खरीदी हुई है। सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार इस मद में कम -से कम 18000 करोड़ रुपयों का प्रावधान किया जाना चाहिए था। वैसे भी भाजपा की केंद्र सरकार किसानों को बोनस या इनपुट सब्सिडी देने के खिलाफ है।
राज्य में 26.85 लाख धान उत्पादक किसानों ने 33.51 लाख हेक्टेयर रकबे का पंजीयन कराया था, लेकिन 24.72 लाख किसान ही 27.92 लाख हेक्टेयर रकबे का 145 लाख टन धान बेच पाए हैं। फरवरी के अतिरिक्त चार दिनों में 19000 किसानों ने 2.69 लाख टन धान बेचा है। इस प्रकार, 2.13 लाख किसानों का 5.59 लाख हेक्टेयर रकबे में उत्पादित धान अनबिका है। 21 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से और अंतिम चार दिनों में बिके धान के औसत के हिसाब से भी, लगभग 30 लाख टन धान अनबिका है और यह छत्तीसगढ़ के कुल धान उत्पादन का 17% है। राज्य सरकार द्वारा देय मूल्य पर इसकी कीमत 9300 करोड़ रुपए होती है।
प्रदेश के 10 जिलों -- बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, सुकमा, मरवाही, मानपुर, बलरामपुर, कोरिया और मनेंद्रगढ़ -- में धान की बिक्री बहुत कम हुई है। इन आदिवासी जिलों से अभी तक हुई कुल खरीदी का मात्र 9% का ही उपार्जन हुआ है। इससे साफ है कि सोसाइटी में धान बेचने से वंचित रहने वालों में अधिकांश सीमांत और लघु किसान तथा इनमें भी बहुलांश आदिवासी-दलित समुदाय से जुड़े किसान ही है। सरकारी खरीद बंद होने से अब इन छोटे किसानों को अपनी फसल खुले बाजार में औने-पौने दामों पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
भूमिहीन कृषि मजदूरों को प्रति वर्ष 10000 रूपये की सहायता देने की योजना का भी यही हाल है। प्रदेश में कृषि मजदूरों के 6.5 लाख परिवार है, लेकिन बजट आबंटित किया गया है केवल 500 करोड़ रुपए ही। इससे 30% कृषि मजदूर तक इस योजना का फायदा नहीं पहुंचेगा।
विधान सभा चुनाव के समय हर विवाहित महिला को हर साल 12000 रूपये सहायता देने का वादा किया गया था और इसे मोदी की गारंटी के रूप में प्रचारित किया गया था। चुनाव के दौरान ही भाजपा ने इस गारंटी को पाने के लिए पूरे प्रदेश में लाखों महिलाओं से फॉर्म भरवाने का अभियान चलाया था, जिसे चुनाव आयोग ने आचार संहिता का उल्लंघन माना था। लेकिन चुनाव के बाद यह जुमला साबित हुई है। बजट में महतारी वंदन योजना के लिए केवल 3000 करोड़ रुपए आबंटित किए गए है और इससे अधिकतम 25 लाख महिलाओं को ही मदद दी जा सकेगी। इस योजना में पात्रता के लिए ऐसी शर्तें थोपी गई हैं कि अधिकांश महिलाएं इस योजना के दायरे से ही बाहर हो गई है। बची-खुची महिलाओं को फिर से फॉर्म भरने के लिए लाइन में खड़ा कर दिया गया है।
असल में मोदी गारंटी के नाम पर जितनी भी लोक लुभावन घोषणाएं बजट में की गई है, उसका असली उद्देश्य आम जनता को फायदा पहुंचाना नहीं, केवल चुनावी लाभ बटोरना है। इसलिए इन योजनाओं में पात्रता के नाम पर ऐसी शर्तें थोपी जा रही हैं, जिससे अधिक से अधिक लोग इन योजनाओं के दायरे से ही बाहर हो जाए। सरकारी विभागों में खाली पड़े एक लाख पदों को भरने और किसानों की कर्जमाफी के मामले में चुप्पी साध ली गई है, तो पूर्व कांग्रेस सरकार द्वारा आधे-अधूरे ढंग से लागू बेरोजगारी भत्ता योजना को विस्तार देने के बजाए भाजपा सरकार ने इसे खत्म करने की घोषणा कर दी है। हां, रामलला दर्शन के नाम पर लोगों की धार्मिक आस्था का चुनावी दोहन करने के लिए भाजपा सरकार के पास पैसों की कमी नहीं है।
इस प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों की जो कॉरपोरेट लूट हो रही है, बजट में इस बारे में पूरी तरह चुप है, लेकिन तकनीक के उपयोग के नाम पर कॉरपोरेट पूंजी के प्रवेश के रास्ते खोल दिए गए हैं।इस प्रकार, भाजपा सरकार द्वारा पेश वर्ष 2024-25 का बजट राष्ट्रवाद की चाशनी में लिपटा कॉर्पोरेटपरस्त और चुनावी जुमलेबाजी वाला बजट ही है।
Chhattisgarh: Economy on ventilator and people 'Ram Naam Sat'
(Article: Sanjay Parate)
Raipur. It is clear from the economic survey presented in the Chhattisgarh Assembly on February 8 that the agricultural crisis in the state is deepening and economic inequality is increasing. Not only has the growth rate in the industry and service sectors declined compared to the national average, but the growth rate in all three sectors including agriculture in the state has also declined compared to the previous year 2022-23. Last year the agricultural growth rate was 4.33%, which has fallen by more than a quarter this year to 3.23%. 70% of the state's population is engaged in agriculture and allied activities, but the contribution of this sector in the economy is only 15.32%. This reveals the plight of the agricultural economy and farmers and the decreasing purchasing power, which is being reflected in the increasing farmer suicides in the state.
According to the survey, the average per capita income in the state has increased from Rs 1,38,898 last year to Rs 1,47,361 this year. Despite this, the income of the majority of the working people in the state has declined and the increase in per capita income has remained imprisoned in the coffers of the corporates. The Modi government at the Center is more responsible for this plight of the state than the previous Congress government, which puts pressure on the state governments to implement the policies of corporate plunder of the natural resources of the state.
The only way to overcome this crisis was to increase public investment in agriculture and rural development, free farmers from bank and moneylender loans, and give them a support price of one and a half times the C-2 cost of the crop and working days and wage rates in MNREGA would have been increased. But no such steps have been taken in the budget presented on February 9.
For example, in the name of employment in rural areas (there is no mention of MNREGA in the entire budget document and this is an indication of what the fate of this scheme is going to be in the state in the coming days!) Rs 2887 crore was allocated. Due to which, on an average, only 32 days of employment will be generated per family per year in rural areas, whereas MNREGA guarantees a minimum of 100 days of employment based on demand. Due to the new rules made for getting employment in MNREGA, 17 lakh rural families of the state have been deprived of the eligibility for employment in MNREGA, despite having registration cards.
Similarly, the amount of Rs 10,000 crore allocated under Krishi Unnati Yojana will be able to compensate for the price difference of purchasing only 100 lakh tonnes of paddy, whereas this year itself 145 lakh tonnes of paddy has been purchased. According to government records, a provision of at least Rs 18,000 crore should have been allocated for this head. Anyway, the BJP central government is against giving bonus or input subsidy to farmers.
In the state, 26.85 lakh paddy producing farmers had registered 33.51 lakh hectare area, but only 24.72 lakh farmers have been able to sell 145 lakh tonnes of paddy from 27.92 lakh hectare area. In the additional four days of February, 19,000 farmers have sold 2.69 lakh tonnes of paddy. Thus, paddy produced by 2.13 lakh farmers in 5.59 lakh hectare area remains unsold. At 21 quintals per acre and also taking into account the average of paddy sold in the last four days, about 30 lakh tonnes of paddy remains unsold and this is 17% of the total paddy production of Chhattisgarh. At the price payable by the state government, it is worth Rs 9300 crore.
The sale of paddy has reduced significantly in 10 districts of the state -- Bastar, Bijapur, Dantewada, Narayanpur, Sukma, Marwahi, Manpur, Balrampur, Koriya and Manendragarh. Only 9% of the total purchase made so far have been procured from these tribal districts. It is clear from this that most of those who are deprived of selling paddy in the society are marginal and small farmers and the majority of them are farmers belonging to the tribal-dalit community. Due to closure of government procurement, these small farmers will now be forced to sell their crops in the open market at throwaway prices.
Same is the case with the scheme to provide assistance of Rs 10,000 per year to landless agricultural labourers. There are 6.5 lakh families of agricultural laborers in the state, but the budget has been allocated only Rs 500 crore. Due to this, the benefit of this scheme will not reach 30% of agricultural labourers.
At the time of assembly elections, a promise of Rs 12000 per year to every married woman was made and it was promoted as a guarantee of Modi. During the elections itself, BJP had launched a campaign to get lakhs of women in the entire state to fill the forms to get this guarantee, which the Election Commission considered a violation of the code of conduct. But after the elections, this has been proved to be a joke. Only Rs 3000 crore has been allocated for the Mahtari Vandan Yojana in the budget and this will help only a maximum of 25 lakh women. Such conditions have been imposed for eligibility in this scheme that most of the women have been left out of the scope of this scheme. The remaining women have been made to stand in the queue again to fill the form.
In fact, all the populist announcements made in the budget in the name of Modi Guarantee, their real objective is not to benefit the people, but only to garner electoral benefits. Therefore, such conditions are being imposed in the name of eligibility in these schemes, due to which more and more people are left out of the scope of these schemes. There has been silence on the matter of filling one lakh vacant posts in government departments and loan waiver of farmers. So, instead of expanding the unemployment allowance scheme implemented in a half-way manner by previous Congress Government, the BJP government has announced to end it. Yes, the BJP government has no shortage of money to exploit the religious faith of the people in the name of Ramlala darshan.
The budget is completely silent about the corporate looting of the natural resources of this state, but in the name of use of technology, the way for the entry of corporate capital has been opened. Thus, the budget of 2024-25, presented by the BJP government, is a budget of pro-corporate and election slogans wrapped in the dose of nationalism.