गोत्रज में वृद्धि और घटी में कितने पीढ़ी तक का सूतक पालना चाहिए ? - PRACHAND CHHATTISGARH

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Wednesday, September 29, 2021

गोत्रज में वृद्धि और घटी में कितने पीढ़ी तक का सूतक पालना चाहिए ?

भारत भर में प्रचलित परम्परा का अध्ययन किया तथा इस विषय के कई विद्वानों के तर्क सुनने के बाद यह तो सर्वमान्य था कि; सूतक 5 पीढ़ी तक का लगता है और गहराई पर जाने से यह बात क्लियर हुई कि ये 5 पीढ़ी का क्या चक्कर है। दरअसल ज्यादातर लोग खुद को एक पीढ़ी मानकर अपने से पहले की चार पीढ़ियों की गणना करते है; जबकि असल मे हर परिवार के लिए यह अलग - अलग होता है। मसलन किसी परिवार में पुरुष को संतान नहीं तो उसे खुद को पहली पीढ़ी मान अपने से पहले की चार पीढ़ी में घट बढ़ याने जन्म - मृत्यु पर सूतक पालना होगा। जबकि जिस पुरुष को संतान हो चुकी तो संतान एक पीढ़ी, खुद दूसरी पीढ़ी और पिता दादा और परदादा याने 3 पीढ़ी मात्र तक के पीढ़ी में घट बढ़ का सूतक लगेगा।

इसी तरह एक और मसला सामने आया कि जिस गोत्र में इन्ही 5 पीढ़ी के भीतर यदि किसी की मौत हुई हो और तेरहवीं का कार्यक्रम सम्पन्न हो चुका हो तो पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म वर्जित है या नही ? इस मसले पर भी बहुत से विचार आये, ज्यादातर विद्वानों का कहना था कि; बिना वार्षिक श्राद्ध के पितृपक्ष में श्राद्ध निषिद्ध है। भले पानी दे सकते है।


कुछ विद्वानों का कहना था कि; चाहे कुछ हो पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध करना ही होता है वो घर आये तो उन्हें भूखा - प्यासा वापस नहीं भेजा जाता, वरना वो परिवार को कष्ट प्रदान करते है क्योकि उनकी गति धीमी हो जाती है। अब इस गम्भीर प्रश्न पर विरोधाभासी तर्को का जब मंथन किया तो एक नई बात सामने आयी कुछ लोग पितृपक्ष में श्राद्ध अर्थात बाकायदा आटे या खीर का पिंड बनाकर उसमे पितरों का आव्हाहन करके नैवेद्य अर्पित करते है; जबकि ज्यादातर पितरों की भिन्न - भिन्न तिथियों में खीर - पूड़ी, बड़ा जैसे व्यंजन बनाकर कौवों, गाय को खिलाते और दान दक्षिणा करते है।

एक बात कॉमन यह कि दोनों प्रकार के लोग जल तर्पण जरूर करते है। यही से सही रास्ता मिला। दरसल पिंड बनाकर पितरों को मंत्रों द्वारा आह्वान करना याने उन्हें उस पिंड में बुलाकर पूजा करना। जबकि सिपंल पितरों के नाम खाना निकाल कर श्राद्ध क्रिया करना अर्थात यदि पीतर घर आये तो वो भूखे पेट ना लौटे। दोनों क्रिया में बहुत अंतर है। सभी को पता है; कलियुग में देवता मंत्र शक्ति के आधीन होते है। पितृ देव भी अलग नहीं है। जब हम पिंड की स्थापना करते है तो उन्हें आना होता ही है और दूसरी पद्वति में उनका आना अनिवार्य नहीं है। 


इसीलिए निर्धारित पीढ़ी के गोत्र में बरसी के होते तक श्राद्ध पक्ष में पिंड स्थापित करने वाला श्राद्ध वर्ज्य है; क्योकि मृतक का वर्ष भर तक मासिक पिंडदान किया जाता है जहां उन पीढ़ी के पूर्वजो को पिंड में आह्वान कर नैवैद्य दिया जाता है। ऐसे में निर्धारित गोत्र के अन्य व्यक्ति द्वारा बुलाना उचित नही होता। क्योकि वार्षिक श्राद्ध के बाद उन्हें अन्य पितरों में शामिल करने के बाद ही कोई अपने पितर का आव्हाहन कर सकता है। लेकिन पितृपक्ष में साधारण क्रिया मसलन इस पक्ष के 16 दिनों तक रोज पितृ को जल अर्पित करना और नियत तिथि में भोजन अर्पण किया जा सकता है। क्योकि इस दौरान आपके दिए भोजन को स्वीकार करना ना करना पितरों की मर्जी पर निर्भर करता है । 

मान लिया जाय कि बरसी तक जिसे ये क्रिया करनी है उसकी श्रध्दा में कमी य्या अन्य किसी कारण वहां उन्होंने भोजन ग्रहण नहीं भी किया हो तो अपने घर मे अपनी पीढ़ी के द्वारा दिया भोजन पा कर वो संतुष्ट होकर आशीर्वाद देकर चले जाते है। फिर हिदू धर्म मे खुद के पितर के अलावा पितृ देवो में माता याने ननिहाल साइड के पितर, हमारे अलग - अलग जन्मों के गुरु देवता ऋषि संत सभी तो पितृ देवो में शामिल है। पितृपक्ष में इन सभी को तृप्त कर मानव जन्म के ऋण को चुकाया जाता है। यदि पितृपक्ष में हम सभी पितृ देवो को जल अर्पित ना करे और उनके लिए भोजन ना रखे तो यह गलत होगा और इसके दुष्परिणाम हमे भोगने पड़ते है। इसलिए पितृपक्ष में श्राद्ध जरूर करे यदि निर्धारित गोत्र में किसी की मृत्यु हो चुकी है लेकिन शुद्धिकरण हो चुका है बरसी नही हुई है तो जल और नैवेद्य मात्र अर्पित करे पिंड का आव्हाहन ना करे याने पिंड दान ना करे, लेकिन भोजन पानी अर्पित करना ही चाहिए।

पितृपक्ष में कुछ सवालों का जवाब ढूंढते - ढूंढते कुछ और सवाल सामने आये तो उसके लिए भी तर्कयुक्त जवाब ढूंढना पड़ा। एक सज्जन ने मुझसे पूछा कि दादा; मेरे पिता की मृत्यु 2 नवम्बर 20 को हुई तो मुझे इस साल पितृ पक्ष में 3 अक्टूबर 21 को वार्षिक श्राद्ध करने कहा है क्या ये सही है ? क्या इसके बाद हम बचे हुए श्रद्धा पक्ष में श्राद्ध कर सकते है ? मैंने उन्हें बताया कि आपके यहाँ तो बरसी 23 अक्टूबर 21 को होनी चाहिए। तो उन्होंने जवाब दिया कि हमारे यहां बरसी 11 माह में की जाती है। उस हिसाब से 3 अक्टूबर 21 की तिथि आ रही। उनका जवाब में ही मुझे उनकी समस्या का पता चल गया। ध्यान से पढ़े क्योकि बहुत से लोग जाने अनजाने यह गलती कर जा रहे।

बहुत से विद्वानों से संपर्क करने पर ज्ञात हुआ कि; बरसी याने वार्षिक श्राद्ध 12 महीने याने वर्ष पूरा होने के बाद पहले दिन याने मृतक की तिथि को करते है। तो ये 11 महीने वाली बात कहां से आ गयी ? इसपर गम्भीर चिंतन करने पर सब क्लियर हो गया। दरअसल हिदू पंचांग के अनुसार एक बरस पूर्ण होता है तब अंग्रेजी कैलेंडर (जनवरी फरवरी वाला) में 11 माह और कुछ दिन ही हुए होते है। जबकि हम किसी मृतक की बरसी हिदू कलेंडर (चैत्र बैशाख) वाले कलेंडर अनुसार सबंधित तिथि में करते है। कोई गलती से अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 12 महीने कम्प्लीट कर बरसी करेगा तो हिन्दू महीने के हिसाब से साल बीत कर बहुत ज्यादा दिन हो जाएंगे; जिससे शास्त्रों के अनुसार मृतक की आत्मा की सेवा में विलंब होगा और आत्मा की गति धीमी हो जाएगी।

भाषा मे 11 महीने बाद बरसी कर लेना कह जाता है जबकि यह 11 महीने वाली बात अंग्रेजी कैलेंडर के लिए लागू होती है। क्योकि हिंदूं कलेंडर में तब तक 12 महीने याने बरसी का समय हो जाया करता है। कुछ लोग गलती से हिन्दू कैलेंडर के 11 महीने का हिसाब लगा बैठते है और समय से पूर्व याने प्रीमेच्योर बरसी कर बैठते है। दरअसल हम अपने दिमाग का सही उपयोग ना कर अपने ही शास्रों में लिखी बातों को कन्फ्यूजन में बदल कर अपने ही धर्म को नाम रखते है, जबकि सब कुछ सही है कही कोई कन्फ्यूजन नही है। अपनी सुविधा का संतुलन करने के चक्कर मे ऐसा ही डिफरेंस आते है जिसकी बहस में पड़ हम विषय की गम्भीरता को नष्ट कर देते है ।

।। अवधुत चिंतन श्री गुरूदेव दत्त ।।

।।आदेश आदेश आदेश ।।


*Ranjeet Bhonsle 
Mass media expert Raipur chhattisgarh.

(इस खोजपरक लेख पर आप सभी की प्रतिक्रिया जरूर लिखे।)



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