कोरोना के इस भयावह दौर के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं के बीच बहुत सी कमियां सामने आयी।

रायपुर। ऑक्सीजन अस्पताल में बेड जैसी कमियों पर चर्चा भी हो रही और उसे दूर करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा प्रयास भी किए जा रहे हैं। लेकिन एक महत्वपूर्ण विषय पर कोई सोच नही रहा तो वो है "एम्बुलेंस की सुविधा।" ज्यादातर एम्बुलेंस सुविधा अब निजी हाथों में है और कितना भी सरकार नियम बनाये अधिकांश आपदा को अवसर बना मनमाने ढंग से मरीजो के परिजनो को लूट रहे यही ख़बरें मीडिया में है।
 
मास मीडिया एक्सपर्ट होने के नाते मुझे इस परेशानी सबंधित समाचार देश भर से आते दिखे पर प्रशासन द्वारा ठोस एवं स्थायी उपाय निकालने के समाचार नहीं दिखे। सरकारी रेट पर एम्बुलेंस वालो को मजबूर करना व्यवहारिक रूप से ज्यादा दिन सफल होगा ये माना जाना गलत होगा। इस समस्या का एक हल अचानक मुझे सूझा; जिसे आप सभी के माध्यम से केंद्र और राज्य सरकार तक पहुँचाना चाहता हूं। यदि आपकी पहुंच उस स्तर तक है तो जनहित में मेरे सुझाव को सबंधित लोगो तक जरूर पहुंचाए।

1) पहियों पर एम्बुलेंस तो हर अस्पताल में है; लेकिन व्यवहारिक रूप से उसकी संख्या सीमित ही रखी जा सकती है, क्योकि उसके लिए स्टाफ, ड्राइवर, गाड़ियों के लिए ईंधन आदि-आदि। कम सँख्या में रहने से माहामारी या इस तरह के अन्य आपातकाल में संख्या कम महसूस होना स्वाभाविक है और इसके लिए गाँव शहर के हर अस्पताल में दस-दस हमेशा रेडी रखना अस्वाभाविक है।


2)
वर्तमान कोविड़ काल मे मूवेबल छोटे ऑक्सीजन कंटेनर विदेश से मंगाए गए जिन्हें समय पड़ने पर हवाई जहाज रेल या सड़क मार्ग पर तुरन्त रख इधर से उधर काम मे लाया जा सकता है और बाकी समय यह व्यवस्थित कही रखा रहेगा जिस पर मेंटेनेंस का खर्च ना के बराबर रहेगा। इसलिए चाहे जितनी मात्रा में कही भी सुरक्षित ढंग से इसे सरकारें रख सकती है।

3) क्यो ना इन्ही मूवेबल छोटे ऑक्सीजन कंटेनर की तर्ज पर आधुनिक लाइट मटेरियल से फाइबर आदि से इसी तरह के एम्बुलेंस बनाये जाए जिसमे छोटा जनरेटर सहित सब पोर्टेबल सुविधा हो। इसमे कोई चक्के वगैरा ना हो। इन्हें इतना बड़ा ही बनाया जाय कि भारत भर में मार्केट में चलने वाली हल्के वाहन मसलन छोटा हाथी या टाटा DI महेंद्रा पिकअप आदि के ट्राले पर आसानी से रखते बने भले चढ़ाने उतारने के लिए अस्पतालों में छोटी क्रेन या चेन पुल्ली जैसे मेनुवल व्यवस्था हो जिसे कोई आम लेबर भी हैंडल कर सके।

4) इससे ये होगा कि कोरोना जैसे पेंडेमिक काल मे गाँव और शहरों में चलने वाले आम मालवाहकों की सेवा लेकर इसमे यह कंटेनर नुमा एम्बुलेंस चढ़ा कर तत्काल जल्दी से जल्दी सुविधा किसी को भी उपलब्ध हो सकती है। यहां तक कि गाँवों में यदि किसी कारण हल्के मालवाहक ना हो तो ट्रेक्टर तो होता ही है उसके ट्राली पर रख कर भी मरीज को जल्दी से जल्दी अस्पताल तक लाने ले जाने की सुविधा हर किसी को बहुत कम खर्च में उपलब्ध रहेगी।

5) वर्तमान में ज्यादातर अस्पतालों में ड्राइवर मेंटेनेंस के कारण ही एम्बुलेंस नही रखी जा सकती है और निजी एम्बुलेंस इतना खर्च करके बनाई जाती है उस खर्च की वसूली भी सिर्फ मरीज सबंधित काम से होनी होती है बाकी समय मेंटेनेंस ड्राइवर स्टाफ का खर्च लगातार होते रहने से ज्यादा खर्चीली होती है उसका खर्च कोई भी हो वहन तो करना होगा।

6) मेरा आशय यह नही कि अभी तक चलती आ रही एम्बुलेंस बन्द कर सिर्फ ये लगे। मेरा सुझाव यह है कि जितनी चल रही वो तो है लेकिन हर निजी एवं सरकारी अस्पताल में उसकी क्षमता अनुसार सर्व सुविधा युक्त कम से कम 5 एम्बुलेंस कंटेनर रखना अनिवार्य कर देना चाहिए ताकि उसका उपयोग इमरजेंसी में आसानी से कम समय मे हो सके। इससे दूरस्थ एवं ग्रामीण क्षेत्रो में भी आम लोगो को बहुत लाभ मिलेगा और मीडिया में जो ठेले या सायकल मोटर साइकिल पर अपने गंभीर रूप से बीमार परिजनों को लाते ले जाते दिखते है। उन्हें भी यह सुविधा आसानी से उपलब्ध हो सकती है।

आशा है आप लोगो को मेरा यह सुझाव पसंद आया होगा। यदि बात समझ मे आ रही तो आप सभी से निवेदन है कि इसे अपने अपने स्तर पर सबंधित लोगो तक पहुंचा कर मानवता की सेवा के क्षेत्र में अपना छोटा सा योगदान प्रदान करें।


*Ranjeet Bhonsle
Mass Media Expert Raipur
Chhattisgarh

 

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