जिला में जारी है कीमती और औषधि बनाने के काम आने वाली लकड़ियों की तस्करी

बालोद पृथ्वी पर मानव जीवन लंबे समय तक तभी चल सकता है, अगर हम वनों का संरक्षण करेंगे, लेकिन वृक्षों की कटाई यूं ही होती रही तो वह दिन दूर नहीं जब पृथ्वी पर मानव जीवन दुश्वार हो जाएगा। पेड़ों की बेलगाम कटाई पृथ्वी पर विभिन्न जानवरों और पक्षियों के अस्तित्व को संकट में डाल रही है। अनुसूचित जनजातियों का जन्मजात जुड़ाव, जंगल, जमीन, जल से रहा है और उनका संघर्ष छत्तीसगढ़ सहित देश के अन्य आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में आसानी से देखा जा सकता है। शासन और प्रशासन को समाज के ऐसे लोगों को ही वन संपदा का रखवाला-रक्षक बनाने की जरूरत है जिस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए, साथ ही  देश  की 2.3 लाख पंचायतों को वन रक्षा संस्कृति का संवाहक बनाया जाए ताकि हर ग्राम पंचायत क्षेत्र के लोग प्रकृति की खुबसूरती को बनाए रखने में अतुलनीय योगदान दे सकें। 


हर पंचायत मुख्यालय में ‘स्मृति-वन’ की स्थापना हो। हर शिक्षण संस्थान, हर सरकारी दफ्तर के प्रांगण में वृक्षारोपण हो। वृक्षों  की अवैध कटाई ने पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाया है, और यह कटाई वषों से हो रही लगातार अवैध कटाई ने जहां मानवीय जीवन को प्रभावित किया है, वहीं असंतुलित मौसम चक्र को भी जन्म दिया है। हरे-भरे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई होने के कारण देश का वन क्षेत्र घटता जा रहा है जो पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत चिंताजनक है। विकास कार्यों, आवासीय जरूरतों, उद्योगों तथा खनिज दोहन के लिए भी, पेड़ों-वनों की कटाई वर्षों से होती आई है। कानून और नियमों के बावजूद वनों की कटाई धुआंधार जारी है। इसके लिए अवैज्ञानिक व बेतरतीब विकास, जनसंख्या विस्फोट व भोगवादी संस्कृति भी जवाबदेह है।

पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक बीसवीं शताब्दी में पहली बार मनुष्य के कार्यकलापों ने प्रकृति के बनने और बिगड़ने की प्रक्रिया को त्वरित किया और पिछले 50 सालों में उसमें तेजी आई है। जबसे हमने आठ और नौ फीसदी वाले विकास मॉडल को अपनाया है, तब से प्रकृति में मानवीय हस्तक्षेप बढ़ गया है। छत्तीसगढ़ राज्य  बनते ही यहां की नदियों को खोदने, बांधने और बिगाड़ने की शुरूआत हो गई है आये दिन चैन माउंटेन मशीन प्रदेश के नदियों की सीना को चिरकर पर्यावरण की धज्जियां शासन और प्रशासन की मौजूदगी में उड़ाई जा रही है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा जारी वन स्थिति रिपोर्ट-2011 के अनुसार देश में वन और वृक्ष क्षेत्र 78.29 मिलियन हेक्टेयर है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 23.81 प्रतिशत है। 2009 के आंकलनों की तुलना में, व्याख्यात्मक बदलावों को ध्यान में रखने के पश्चात देश के वन क्षेत्र में 367 वर्ग किमी की कमी हुई है। 15 राज्यों ने सकल 500 वर्ग किमी वन क्षेत्र की वृद्धि दर्ज की है, जिसमें 100 वर्ग किमी वन क्षेत्र वृद्धि के साथ पंजाब शीर्ष पर है। 12 राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों (खासतौर पर पूर्वोत्तर राज्य) ने 867 वर्ग किमी तक की कमी दर्ज की है। पूर्वोत्तर के वन क्षेत्र में कमी खास तौर यहां पर खेती के बदलावों के कारण हुई है। नीति का लक्ष्य यह है कि 33 प्रतिशत क्षेत्र में वन और पेड़ है। 


छत्तीसगढ़ के बालोद जिला में रोजाना कीमती और उपयोगी वृक्षों की कटाई दलालों के माध्यम से की जा रही है और इन दलालों को संरक्षण जिला प्रशासन में बैठे जिला के एक बड़े अधिकारी देते है; जिसके बारे सुत्रो से मिली जानकारी अनुसार लकड़ी कोचियाओ से खास लगाव होने की बात कही गई है , कहा तो यंहा तक गया है कि गुरूर विकासखंड क्षेत्र के एक लकड़ी कोचिया को अवैध लकड़ी परिवहन के केश में छूट देने के एवज में उक्त अधिकारी ने अपने लौह नगरी स्थित आवास में लकड़ी कटाई का कार्य कराने के उद्देश्य से उक्त लकड़ी को लौहनगरी बुलाया और वहां पर अपने आवास में उगी हुई हरे वृक्ष की कटाई को अंजाम दिया। 

अमित मंडावी

इस दौरान गुरूर विकासखंड क्षेत्र से गये हुए मजदूर की पैर में साहब जी के घर में उगी हुई हरे वृक्ष की पेड़ गिर गया और मजदूर बुरी तरह से घायल हो गया। आज तक साहब बूटी कौड़ी उस मजदूर को इलाज हेतू नही दिया जबकि उक्त लकड़ी कोचिया के नजदिकी संबंध बताकर अनेक सरकारी जगहों की हरे-भरे वृक्षों को धराशाई कर चुका है यदि जिला के अधिकारियों की मानसिकता पर्यावरण को लेकर इसी प्रकार की रही तो यकिनन जिला वासियों के लिए आने वाले दिन पर्यावरण की खुबसूरती के लिए तरसेगी। जिला में वृक्षारोपण के लिए सरकार ने अबतक किया है करोड़ों रुपए खर्च तो वंही वृक्षारोपण के लिए जन जागरूकता अभियान चलाने वाले अधिकारियों की इस तरह के कार्य विचार करने योग्य हैं।