BIJAPUR : सीआरपीएफ कैंप में मिला फंदे पर लटकती हुई लाश ! - PRACHAND CHHATTISGARH

Monday, December 8, 2025

BIJAPUR : सीआरपीएफ कैंप में मिला फंदे पर लटकती हुई लाश !

तर्रेम थाना क्षेत्र के वाटेवागु स्थित सीआरपीएफ कैंप में भीमा की रहस्य्मयी मौत

BIJAPUR : नक्सल प्रभावित बीजापुर की पहाड़ियों और जंगलों में बसे छोटे-छोटे गाँव आज भी संघर्ष, भय और असुरक्षा के घेरे में सांस लेते हैं। इसी वातावरण में सुरक्षा बलों के सहयोगी के रूप में सक्रिय रहने वाले ग्रामीण भीमा माड़वी की सीआरपीएफ कैंप में फंदे पर लटकती हुई लाश ने एक बार फिर इस पूरे क्षेत्र को सवालों के कटघरे में ला खड़ा किया है। तर्रेम थाना क्षेत्र के वाटेवागु स्थित सीआरपीएफ कैंप में 48 वर्षीय भीमा की रहस्य्मयी मौत, और इसके साथ ही एक ऐसी कहानी सामने आई, जिसे न तो साधारण घटना कहकर टाला जा सकता है और न ही यह स्वीकार किया जा सकता है कि सब कुछ सामान्य परिस्थितियों में हुआ।

साझा की गई तस्वीर एक काल्पनिक तस्वीर है वास्तविकता से इसका कोई सम्बन्ध नहीं 

भीमा माड़वी, निवासी रेखापल्ली, पिछले कई महीनों से सुरक्षा बलों के साथ नक्सल-विरोधी अभियानों में सक्रियता से सहयोग करता रहा था। ग्रामीण होने के बावजूद उसकी भूमिका कई बार निर्णायक साबित हुई थी। 5 दिसंबर को भी उसने जवानों के साथ मिलकर जंगलों में छिपाए गए आईईडी और विस्फोटक सामग्री की बरामदगी में महत्वपूर्ण मार्गदर्शन दिया था। रेखापल्ली, धामारम, कोंडापल्ली और चिंतावागु नदी तट के घने जंगलों में चले इस बड़े सर्च अभियान में भीमा उन चुनिंदा ग्रामीणों में शामिल था जिनकी स्थानीय जानकारी सुरक्षा बलों के लिए एक बड़ी ताकत बनी।

6 दिसंबर को जवान वापस कैंप लौटे और भीमा भी उनके साथ आया। शाम को भोजन करने के बाद वह टहलने के लिए कैंप के बाहर मैदान की ओर गया, लेकिन कुछ ही देर बाद जवानों ने उसे पेड़ से तौलिए के सहारे लटका हुआ पाया। तुरंत उसे नीचे उतारकर अस्पताल ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

घटना की सूचना फैलते ही इलाके में तनाव का माहौल बन गया। ग्रामीण, परिजन और स्थानीय जनजीवन में इस मौत ने कई आशंकाओं को जन्म दे दिया। प्रारंभिक तौर पर कुछ जवानों ने यह संभावना जताई कि नक्सलियों के लगातार मिल रही धमकियों और उस पर बने दबाव के कारण भीमा मानसिक तनाव से जूझ रहा होगा। माओवादी कई महीनों से उस पर नजर रखे हुए थे, क्योंकि भीमा बार-बार सुरक्षा बलों के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभा रहा था। ऐसे क्षेत्र में यह भय हमेशा रहता है कि नक्सलियों के प्रतिशोध की कीमत आमतौर पर इन्हीं सहयोगी ग्रामीणों को चुकानी पड़ती है।

परिजनों ने इस संभावना को सिरे से खारिज कर दिया। उनका कहना है कि भीमा कभी भी आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठा सकता। परिजनों ने यह भी आरोप लगाया कि घटना बेहद संदिग्ध है और यह आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या हो सकती है। उन्होंने उच्चस्तरीय जांच की मांग की है, ताकि मौत की वास्तविक परिस्थितियाँ सामने आ सकें। ग्रामीण समुदाय का भी यही मानना है कि नक्सली दबाव, कैंप की सुरक्षा व्यवस्था और भीमा की विशेष भूमिका - इन सभी पहलुओं की गहरी जांच अनिवार्य है।

बीजापुर पुलिस ने हालांकि मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच शुरू कर दी है। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है, जिसकी रोशनी में मौत के वास्तविक कारण को समझने में मदद मिलेगी। घटना के बाद सीआरपीएफ, जिला पुलिस और स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों ने कैंप पहुंचकर घटनास्थल का निरीक्षण किया। पुलिस का कहना है कि परिजनों के सभी आरोपों की जाँच की जाएगी और हर एंगल को बिना किसी पूर्वाग्रह के खंगाला जाएगा।

इस घटना ने सुरक्षा बलों और ग्रामीणों के बीच बने सहयोग के उस नाजुक ताने-बाने को फिर से उजागर कर दिया है, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अक्सर खतरे की धार पर संतुलित रहता है। सुरक्षा बलों के लिए ग्रामीणों का सहयोग इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वे जमीन की वास्तविकता से परिचित होते हैं। लेकिन दूसरी ओर, वही सहयोग उन्हें माओवादियों के निशाने पर भी ला खड़ा करता है। यही उलझन इन इलाकों में जीवन का कठोर और कड़वा सच है, जहाँ कोई भी कदम दो धारी तलवार की तरह काम करता है।

भीमा माड़वी की मौत इसी वास्तविकता की एक और दर्दनाक गूँज बनकर सामने आई है। एक ऐसी गूँज, जो केवल एक परिवार का शोक नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की मनःस्थिति का प्रतीक है। यह सवाल सिर्फ इतना भर नहीं है कि भीमा ने आत्महत्या की, या उसकी हत्या हुई ! वास्तविक प्रश्न यह है कि ऐसे हालात आखिर क्यों बनते हैं, और उन हालातों की जिम्मेदारी किसके कंधों पर जाती है।

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और आगे की जांच क्या दिशा दिखाएगी, इसका इंतजार है। लेकिन इतना निश्चित है कि यह घटना उस लंबे संघर्ष की एक और परत खोलती है, जिसके बीच इस क्षेत्र के लोग रोज जीते और कभी-कभी मरते हैं। यहाँ हर मौत के साथ केवल एक व्यक्ति नहीं जाता, बल्कि विश्वास, सुरक्षा और व्यवस्था की कई धारणाएँ भी सवालों के कटघरे में खड़ी हो जाती हैं।

भीमा माड़वी की मौत भी ऐसी ही एक परत है, अनुत्तरित सवालों, खामोश आशंकाओं और छुपे हुए दबावों से भरी हुई। पुलिस जांच अपनी राह लेगी, रिपोर्टें आएंगी, बयान दर्ज होंगे… लेकिन इस गहरे दुख और असमंजस के बीच एक बात साफ है कि यह मौत सामान्य नहीं थी, और इस क्षेत्र के लोग भी इसे सामान्य मानने को तैयार नहीं।




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