कौन सुनेगा शा. स्कूल पलारी के बच्चों की गुहार, आखिर कौन कर रहा इनकी मासूम जिंदगी से खिलवाड़? - PRACHAND CHHATTISGARH

Monday, November 24, 2025

कौन सुनेगा शा. स्कूल पलारी के बच्चों की गुहार, आखिर कौन कर रहा इनकी मासूम जिंदगी से खिलवाड़?

 क्या यह ‘रीलबाज़ी’ है या मां की ममता?



बालोद कलेक्टर के वायरल वीडियो के बीच कई सवाल भी खड़े**



भारत सदियों से विश्वगुरु कहलाने का गौरव रखता है। हमारे ऋषि-मुनियों और विद्वानों ने जिस शिक्षा-परंपरा को जन्म दिया, उसकी मिसाल विश्व में कहीं नहीं मिलती। लेकिन अमृतकाल में शिक्षा के वर्तमान हालात देखकर कई बार यह सवाल उठता है कि क्या हम वास्तव में विश्वगुरु बनने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं?


इसी बीच बालोद जिले से आई एक संवेदनशील तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है। जिले की कलेक्टर श्रीमति दिव्या उमेश कुमार मिश्रा प्राथमिक शाला गुदूम के निरीक्षण पर थीं। निरीक्षण के दौरान एक छात्रा के बालों की रिबन खुली हुई दिखी, जिसे देखते ही कलेक्टर महोदया ने बच्ची को अपने पास बुलाया और स्वयं उसके बाल संवारकर रिबन बांध दी। यह दृश्य किसी मां की ममता जैसा लगा, जिसे देखकर लोग कलेक्टर महोदया की संवेदनशीलता की तारीफ करते नहीं थकते।


इस वीडियो के वायरल होते ही कलेक्टर महोदया देश-भर में चर्चाओं में आ गई हैं। जिले के लोग भी उन्हें अपने बच्चों की ‘मां’ जैसा ही दर्जा देते हैं।


लेकिन इसी भावनात्मक वीडियो के बीच एक बड़ा मुद्दा भी सामने आ रहा है, जो शायद बच्चों के जीवन से अधिक जुड़ा हुआ है।


पलारी सरकारी स्कूल के बच्चों की स्थिति नाज़ुक


गुरूर विकासखंड के नगर पंचायत पलारी में स्थित सरकारी स्कूल के बच्चों की हालत बेहद खराब बताई जा रही है। स्कूल के पास निर्मित उसना राइस मिल के कारण बच्चे ठीक से बैठकर पढ़ भी नहीं पा रहे हैं। स्कूल का वातावरण इतना दूषित हो जाता है कि बच्चे छह घंटे तो दूर, छह मिनट तक भी सामान्य रूप से कक्षा में नहीं बैठ पाते।


स्थानीय लोगों का कहना है कि बच्चों को स्वच्छ वातावरण, शांत माहौल और सुरक्षित जगह की आज सबसे ज्यादा आवश्यकता है।


कलेक्टर से उम्मीद—मां की तरह आंसू पोंछने की


जिस तरह कलेक्टर महोदया ने गुदूम स्कूल की बच्ची के बाल संवारे, ठीक उसी तरह पलारी स्कूल के सैकड़ों बच्चों की समस्या भी एक ‘मां’ ही समझ सकती है।

जिलेवासियों की अपेक्षा है कि कलेक्टर महोदया पलारी के बच्चों की पीड़ा को भी उसी ममता और संवेदना से समझें और उनकी शिक्षा को सुरक्षित बनाने की दिशा में शीघ्र कदम उठाएँ





क्योंकि

पूत कपूत हो सकता है, किंतु माता कुमाता नहीं होती।

और मां का फर्ज सिर्फ प्यार देना ही नहीं, बल्कि अपने बच्चों की मुश्किलें दूर करना भी होता है।



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